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आशा है कि, विद्वजन निष्पक्षदृष्टिसे इस ग्रन्थके महत्त्वको समझकर लाभ उठावेंगे और इसके प्रचार करनेका प्रयत्न कर मेरे और प्रकाशकमहाशयके परिश्रम तथा अर्थव्ययको सफल करेंगे। अलमतिविस्तरेण प्राज्ञेषु ।
बम्बई ता. १५ मई १९१२.
नन्दलाल शर्मा।
"Aho Shrutgyanam"