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यह नानार्थकोश है । संस्कृतमें कई नानार्थकोश हैं, परन्तु जहां तक हम जानते हैं, कोई भी इतना बड़ा और इतने अधिक अर्थोंको बतलानेवाला नहीं है । इसमें एक २ शब्दको जितने अर्थोंका वाचक बतलाया है, दूसरोंमें इससे प्रायः कम ही बतलाया है। उदाहरणके लिये एक 'रुचक' शब्दको ही लीजिये । जहां अमरमें चार, मेदिनीमें दश इसके
अर्थ बतलाये हैं, तहां इसमें १२ अर्थ बतलाये हैं। यही इस कोशमें विशेषता है।
यथा--
एरण्ड उरुवूकश्च रुचकश्चित्रकश्च सः।
अमरकोश द्वितीयकाण्ड वनौषधिवर्ग श्लोकांक ५१. फलपूरो बीजपूरो रुचको मातुलुङ्गके ।
अमरकोश द्वितीयकाण्ड वनौषधिवर्ग श्लोकांक ७८. सौवर्चलेक्षरुचके । अमरकोश द्वितीयकाण्ड वैश्यवर्ग श्लोकांक ४३. सौवर्चलं स्याद्रुचकम् । अमरकोश द्वितीयकाण्ड वैश्यवर्ग श्लोकांक १०९,
रुचको बीजपूरे च निष्के दन्तकपोतयोः । न द्वयोः सर्जिकाक्षारे पश्वाभरणमाल्ययोः । सौवर्चलेऽपि माङ्गल्यद्रव्ये चाप्युत्कटेपि च ।
मेदिनीकोश कत्रिक श्लोकांक १४६-१४७. रुचकं मातुलद्रव्ये दन्ते सौवर्चले नजि । उत्कटे चाश्वभूषायां विडङ्गे कण्ठभूषणे ॥ बीजपूरेऽपि दीनारे रोचनादेववृक्षयोः ।
विश्वलोचनकोश कतृतीय श्लोकांक १४६-४७.
"Aho Shrutgyanam"