________________
विश्वलोचनकोशः- [ डान्तवर्गेअथ डान्तवर्गः।
डैकम् । डकारः पार्वतीनाथे चासे शब्देऽपि दृश्यते ।
इद्वितीयम् । अण्डं तु खगमीनादिकोशे स्यान्मुष्कवीर्ययोः ॥ १॥ इडा बुधवधूवाचोरिलावद्भगवोरपि । काण्डोऽस्त्री वर्गबाणार्थनालावसरवारिषु ॥ २ ॥ दण्डे प्रकाण्डे रहसि स्तंबे कुत्सितकुत्सयोः । पतिवलीसुते जारात्कुण्डः कुण्डी कमण्डलौ ॥ ३ ॥ कुण्डं देवजलाधारे पिठरे तु मतं न ना । क्रीडा केलाववज्ञायां खेलायामपि सम्मता ॥ ४ ॥ क्रोडः शनौ वराहे च क्रोडं क्रोडा च वक्षसि । खण्डोद्धेऽस्त्री पुमानिक्षुविकारे मणिदूषणे ॥ ५॥
अथ डान्तवर्ग।
एकांत, गुच्छ, निंदित, निंदा (पुं०
डैक ।
ड(कार)-महादेव, चास-पक्षी, शब्द कुंड-पतिके जीतेहुए जारसे उत्पन्न (आवाज) (पुं०) | हुवा, (पुं०) डद्वितीय ।
कुंडी-कुंडी या कमंडल( स्त्री० )॥३॥ अंड-पक्षी और मच्छीआदिकोंका कुंड-वर्षाके जलका रहनेका स्थान,
कोश (अंडा ), अंडकोश, वीर्य, पेट ( स्त्री० न०) (न.) १)
क्रीडा-कीडाप्रकार, तिरस्कार, खे. इडा-इला-बुधग्रहकी स्त्री, वाणी, लना, (स्त्री०)॥ ४॥ पृथ्वी, गौ, ((खी०)
क्रोड-शनि-प्रह, सूकर, (पुं०)कोड कांड-वर्ग (विषयसमाप्ति), बाण, अर्थ, (न०) और कोडा (स्त्री०) छाती, नाल-डंडी, अवसर, जल, ॥ २॥ खंड-टुकडा (पुं० न०) खाँड दण्ड ( डंडा), वृक्षका-स्थूलभाग, (चीनी), मणिदोष, (पुं०)॥५॥
"Aho Shrutgyanam"