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गन्धर्वनगरम्
स्वल्पे स्वल्पफलं सर्व बहूनां तु फलं महत् ॥ १७७॥ जलार्द्रत्वे महावृष्टिर्बिम्बनाशे नृपक्षयः । अकाले फलपुष्पाणि सस्यनाशकराणि च ॥ १७८ ॥ यस्य राज्ये च राष्ट्रे च देवध्वंसः प्रजायते । सपरिवार भूपस्य तस्य ध्वंसः प्रजायते ॥ १७९ ॥ सूर्येन्द्रोः सर्वथा ग्रासे सर्वस्यापि महर्घता । भौमादिग्रहवर्गस्य वक्रे च प्राक्तनं फलम् ॥१८०॥
अथ गन्धर्वनगरम्—
कपिलं सस्यघाताय माञ्जिष्ठ हरणं गवाम् । अव्यक्तवर्ण कुरुते बलक्षोभ न संशयः ॥ १८९ ॥ गन्धर्वनगरं स्निग्धं सप्राकारं सतोरणम् । सौम्यां दिशं समाश्रित्य राज्ञस्तद्विजयङ्करम् ॥१८२॥
१७७ ॥ मण्डल में से जल के कण का स्राव हो, या मण्डल जल से भीगा हुआ मालुम पड़ें तो अत्यन्त वर्षा होती है । बिम्ब के नाश से राजा की मृत्यु होती है। अकाल में फल पुष्पों का होना खेती का विनाश कारक है ॥ १७८ ॥ जिस के राज्य या देश में देवता का विनाश हो उस देश के राजा का परिवार सहित नाश होता है ॥ १७६ ॥ सूर्य चन्द्रमा का पूर्ण ग्रास हो तो सब चीजों का भाव तेज हो । मङ्गलादि ग्रह वक्री हो तो उनका पूर्वोक्त ही फल कहना ॥ १८० ॥
गंधर्वनगर कपिल वर्ण याने मजीठ रंग का दीखे तो गायों को पड़े तो बल का क्षोभ करता है ।। रिकोट (किला) और ध्वजा सहित विजय होता है ॥ १८२ ॥
भूरा दीखे तो खेती का विनाश हो, पीड़ा कारक है, अप्रकट रंग का देख १८१ ।। यदि गंधर्व नगर स्निग्ध पपूर्व दिशा में देख पड़े तो राजा का
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