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________________ मेघसहोदये अथ द्वारचतुष्टयकथनो नाम द्वादशोऽधिकारः+ वारद्वारं पुराप्रोक्तं तिथिमासनिरूपणे । नक्षत्रमत्र वक्ष्यामि वर्षबोधविधित्सया ॥१॥ कृत्तिकादिकनक्षत्रं त्रयोदशकमब्दतः । सूर्यभोग्यं भवेद् योग्य-मब्दस्येह शुभप्रदम् ॥२॥ अश्विनी धान्यनाशाय जलनाशाय रेवती । भरणी सर्वनाशाय यदि वर्षेन्न कृत्तिका ॥ ३ ॥ कृत्तिकायां निपतिता पञ्चषा अपि बिन्दवः | पूर्वपचाद्भवान् दोषान् हत्वा कल्याणकारिणः ||४|| रोहिण्यां भावतो भोगे निषिद्धमपि वर्षणम् । नद्याः प्रवाहे नो दुष्टं स्याद्वादी विजयी ततः ॥५॥ रोहिण्यां भास्वतस्तापाद्वर्षायां स्याद्धनो घनः । गोखुरोत्खातरजसा वृष्टिर्दुष्टा प्रकीर्त्तिता ॥ ६ ॥ (४६८) तिथि मास का निर्णय करने के लिये वार द्वार पहले कह दिया, अत्र वर्ष शुभाशुभ फल जानने के लिये नक्षत्र द्वार को कहता हूँ ॥ १ ॥ वर्ष में सूर्यभोग्य के कृत्तिका आदि तेरह नक्षत्र वर्ष के योग्य हो तो शुभ फल दायक होते हैं ॥२॥ यदि कृत्तिका में वर्षा नहीं तो अश्विनी धान्यका, रेवती जलका और भरणी सब का नाशकारक होते हैं ||३|| यदि कृत्तिका में जल के पांच छ: भी बूंद गिरे तो पहले और पीछे होनेवाले दोषों का नाश कर के कल्याण करने वाले होते हैं ||४|| सूर्य रोहिणी नक्षत्र पर हो तत्र वर्षांद होना अच्छा नहीं और विशेष वर्षा होकर नदियोंमें पूर आये तो दोष नहीं ऐसा स्याद्वाद मत है || ५ || रोहिणी में सूर्य से बहुत ताप (गरमी) पड़े तो आगे वर्षा बहुत अच्छी हो । गौओंके खुर से रज (शुल्क धूलि ) निकल आ ऐसी अल्प वृष्टि अच्छी नहीं ॥ ६ ॥ , "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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