SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रहयोगफलम् (४६७) एतयो पश्चमाः क्रूरा दुःखदुर्भिक्षहेतवे ॥२८९॥ बृहस्पतितमःसौरिमङ्गलानां यदैककः । त्रिके च पञ्चके कार्यों धान्यस्य क्रयविक्रयौ ॥२६॥ गुरोः सप्तान्त्यपछि स्थानगा वीक्षता अपि । शनिराहुकुजादित्याः प्रत्येक देशभञ्जकाः ॥२९॥ इत्येवं ग्रहवकमार्गगमनांस्तत्प्राप्तिरूपोदया नाचार्याविनिषेवणेन सुधिया सम्यगु विचार्यादरात् । वर्षे भावि शुभाशुभ फलमलं वाच्यं विविच्य स्वयं, येन स्यात्कमला स्वपाणिकमलग्राहाय बद्वाग्रहा।।२९२॥ इतिश्रीमेघहोदयसाधने वर्षयोधे तपागच्छीयमहोपाध्यायश्रीमेघविजयगणिविरचिते ग्रहगणविमर्शनो नाम एकादशोऽधिकारः ॥ तो सुखकारक होते हैं, और पंचम स्थान में क्रूर ग्रह हो तो दुःख और दुर्भिक्षकारक होते हैं ।।२८६। बृहस्पति, राहु, शनि और मंगल, इनमेंसे कोई ग्रह तृतीय और पंचममें हो तो क्रमसे धान्यका क्रय विक्रय करना याने खरीदना तथा बेचना ॥२६०। यदि बृहस्पति से सातयां, बारहवां, पांचवां और दूसरा इन स्थानों में शनि, राहु, मंगल और सूर्य इनमेंसे कोई ग्रह हो या उनकी दृष्टि हो तो देशका नाशकारक होते हैं ॥२६॥ इसी तरह ग्रहों का कक और मार्ग गमन को तथा उसकी प्रतिरूप उदय को आचार्योंका चरण कमलकी भक्तिपूर्वक सेवा करके और बुद्धि से विचार करके भावि वर्षका शुभाशुभ फलको स्वयं विचारके ही कहना चाहिये, जिससे लक्ष्मी उसका कर कमल ग्रहण करने के लिये आग्रहवाली होती है ॥२६॥ सौराष्ट्रराष्ट्रान्तर्गत-पादलिप्तपुरनिवासिना पण्डितभगवानदासाख्यजैनेन विचितया मेघमहोदये बालावधोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकितो प्रहगणविमार्शननाम एकादशमोऽधिकारः । "Aho Shrutgyanam
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy