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अत्यातप्रकरणम् अन्तःपुरपुरानीक-कोशयानपुरोधसाम् । राजपुत्रप्रकृत्यादे-रपि रिष्टफलं भवेत् ॥३२॥ पक्षमासर्तुषण्मास-वर्षमध्ये न चेत् फलम् । रिष्टं तद् व्यर्थमेव स्यादुत्पन्ने शान्तिरिष्यते ॥ ३३ ॥ दौरथ्ये भाविनि देशस्य निमित्तं शकुनाः सुराः । देयो ज्योतिषमन्त्रादिः सर्व व्यभिवरेच्छुभम् ॥ ३४॥ प्रवासयन्ति प्रथम स्वदेवान् परदेवताः । दार्शयन्ति निमितानि भने भामिनि नान्यथा ॥३५॥ एवनुत्पातसंयोगान् ज्ञात्वा शारान्तादपि । वर्षे शुभाशुभ देशे ज्ञेय वृटिपरीक्षकैः ॥ ३६॥ सुषमा ज्ञापर्क सूत्रं स्थानाङ्गे वीरभाषितम। तदुत्पात रिज्ञानात् सुज्ञानं सुविया स्वयम् ॥ ३७॥ में अन्य जाति के बच्चे का प्रसव हो और गदही बचा प्रस्त्रवती देखपड़े तो भा उत्पन्न होता है ॥३१॥ अन्तःपुर, नगर, सेना, भंडार, वाहन, [ हाथी, घोडा, पालखी आदि ] राजगुरु, राजा, राजपुत्र, और मंत्री आदि को उत्पात का फल होता है ॥३२॥ एक पक्ष, एक मास, दो मास, छ: मास या एक वर्ष इन में उत्पात का फल न मिले तो वह उत्पात व्यर्थ सनझना । उत्पात होने पर शान्ति कराना अच्छा है ॥३३॥ जब देश की खराब दशा होने वाली होती है तब निमित्त, शकुन, देवता, देवी, ज्योतिष और मंत्र आदि शुभ हो तो भी विपरीत फल देते हैं ॥३४॥ जब भविश्य में देश आदि का नाश होने वाला हो तब ही दूसरे देवता अपने देश के देवता को निकाल देते हैं और दुष्ट उत्पात दिखलाते हैं। जब नाश न होने वाला हो तब ऐसे उत्पात नहीं होते हैं ॥३५॥ इसी तरह दूसरे शास्त्रों से भी उत्पात योगों को जानकर देश में वर्ष का शुभाशुभ ज्योतिषियों को जानना चाहिये ॥३६॥ स्थानांग सूत्र में सुम्माज्ञारक सूत्र
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