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मेघमहोदये वृक्षे पत्रे फले पुष्पे वृक्षः पुष्पं फलं दलम् । जायते चेत् तदा लोके दुर्भिक्षादिमहाभयः ॥ २६ ॥ गोध्वनिर्निशि सर्वत्र कलिर्वा दरः शिखी । श्वेतकाकश्च गृध्रादिभ्रमणं देशनाशनम् ॥ २७॥ अपूज्यपूजा पूज्याना-मपूजा करिणीमदः । शृगालोऽहि लवन् रात्रौ तित्तिरश्च जगभिये ॥२८॥ खरस्य रसतश्चापि समकालं यदा रसेत् । अन्यो वा नखरी जीवो दुर्भिक्षादिस्तदा भवेत् ॥ २९ मांसाशनं स्वजातेश्च घिनौतून् भुजगांस्तिमीन् । काकादेरपि भक्षस्य गोपनं सस्यहानये ॥३०॥ अन्यजातेरन्यजाते-र्भाषणं प्रसवः शिशोः । मैथुनं च खरीसूति-दर्शनं चापि भीप्रदम् ॥ ३१॥ पड़े तो जगत में बड़ा भय देनेवाले दुष्काल भादि उपद्रव होते हैं ॥२६॥ सब जगह रात्रि में गौओं का शब्द सुनने में भावे, जहाँ तहा कलह हो, शिखा वाले मेडक देखपड़े, सफेद कौवा कुत्ता और गीध पक्षी इन का घुमना अधिक देखपड़े तो देश का नाश होता है ॥२७॥ जहाँ पूजनीय पुरुषों की पूजा न हो, अपूननीय पुरुषों की पूजा हो हथिणी के गंडस्थलमेंसे मद झरने लगे, शियाल [ गीदड़ ] दिन में शब्द करे और रात्रि में तीतरपक्षी बोले तो जगत् में भय उत्पन्न होता है ॥२८॥ जिस समय गदहा [ गधा ] रेंकता हो उस समय उसके साथ कोई भी नखवाला जीव भोंकने लगे तो दुकाल आदि उपद्रव होते हैं ॥२६॥ बिल्ली, सर्प और मच्छी ये तीन जीवों को छोड़कर बाकी के जीव अपनी अपनी जाति के जीवों का मांस भक्षण करें, और कौवा प्रादि अपना भक्ष्य [खोराग] छुपा दे तो धान्य का नाश होता है ॥३०॥ अन्य जाति के जीव अन्य जति के जीवों के साथ भाषण या मैथुन करें, अन्यजाति
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