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उत्पातप्रकरणम् तदा दुष्टे ग्रहादीनां योगे दुर्भिक्षता नहि किन्तु विग्रह-मार्यादिस्तत्कृतं वैकृतं भवेत् ॥१०॥ एवं मरुस्थलादौ स्याद् यदा शुभो ग्रहोदयः । तथाप्यवग्रहो वृष्ट-र्वाच्यः स्वल्पोऽपि धीमता ॥११॥ ज्ञेयं वाताभ्रयोगेन देशे वर्षशुभाशुभम् ।। तेनायं बलवान् सर्व-अजयोगेभ्य इष्यते ॥१२॥ देशे स्वभावानुत्पातः कदाचिद् तत्वतो बली। तस्माद् वर्षक्यिोधाय लक्षयेत् तं विचक्षणः ॥ १३ ॥
यदुक्तं विवेकविलासे उत्पातप्रकरणम् --~-- स्ववासदेशमाय निमित्तान्यवलोकयेत् ।
तस्योत्पातादिकं वीक्ष्य त्यजेत् तं पुनरुद्यमी ॥१४॥ होती है, क्योंकि काल की अपेक्षा क्षेत्र ( देश ) में बलिउता है ।।६।। इसलिये वहां ग्रहों का दुष्टयोग होने पर भी दुकाल नहीं होता, किंतु संग्राम प्लेग
आदि उपद्रयों के कारण से विपरीत भी हो जाता है ।।१०।। उसके अनुसार मारवाड़ आदि जांगल देशों में अधिक वर्षा करने वाले शुभ ग्रहों का उदय होने पर भी बरसात का अभाव होता है, क्योंकि इस देश में बुद्धिमानों ने कम वृष्टि का योग बतलाया है ॥११॥ देश में वायु और बादल के योग से वर्ष का शुभाशुभ जानना । यह योग सब दृष्टियोगों से बलवान् कहा है ॥१२॥ देश में कभी स्वाभाविक उत्पात हो तो वास्तविक बलवान होता है । इसलिये विद्वान् लोग वर्षफल जानने के लिये उस उत्पात को जानें ॥१३॥ __अपने रहने के स्थान के और समग्र देश के कल्याण के लिये निमित्त ( शकुन ) आदि देखना चाहिये, उन में उत्पात आदि को देख कर अपने स्थान का और देशका उद्यमी पुरुष त्याग कर दें ॥१४॥ जो पदार्थ जिस स्वरूप में सर्वदा रहता है, उस में कुछ फेरफार मालून
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