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मेघमहोदये धार्माधौं विधत्ते सुखनिरतजनो मेंघपूर्णा धरित्री। माङ्गल्यं सर्वलोके प्रभवति पहुशः सस्यनिष्पत्तिहर्षा,
भूमीरम्या विवाहै जनमुखसमयः कुम्भगे सूर्यपुत्रे ॥१३॥ पृथ्वी व्याकम्पमाना प्रचलति पवनः कम्पत्ते नागलोकः ,
सप्तद्रीपेषु सिन्धौ गिरिवरगहने सर्पवृक्षादिहानिः । नाशः पृथ्वीपतीनां जनपदविलयो यान्ति मेघाः प्रणाशं, __ वाराखामेवमुक्तं चतुरजनमुदे मीनगे सूर्यपुत्रे ॥१४॥ गार्गीयसंहितायामपि
आप्लवन्ते समुद्राः प्रचलितगगनं कम्पते नागलोक . .: श्चन्द्रार्की रश्मिहीनौ ग्रहगणसहितौ वाति वातः प्रचण्डः। प्रभ्रंशः पार्थिवानां जनपदमरणं यान्ति मेघाःप्रणाशं, - चक्रावतः समस्तं भ्रमति जगदिदं मीनगे चार्कपुत्रे॥१५॥
__इति संक्षेपतः शनिचारः
राशिम शनि हो तो लक्ष्मीकी प्राप्ति, देशमें सुख, धन धान्यसे पूर्ण राजाओं धर्माधर्मको जाननेवाले हों. मनुष्यों सुखमें लीन हो पृथ्वी जलसे पूर्ण हो, सब लोगमें मंगल, धान्यकी प्राप्ति, पृथ्वी रमणीक और विवाहादि मंगलों से पूर्ण हो ॥ १३ ॥ मीनराशिका शनि हो तो पृथ्वी कम्पायमान हो, वायु चले; नागलोक कम्पायमान हो, सात द्वीप समुद्र और पर्वतोंमें वृक्षादिकों की हानि हो, राजाओंका नाश, देश का प्रलय और मेघ का विनाश हो; इस प्रकार चतुर मनुष्यों की प्रसन्नता के लिये वाराही संहितामें कहा है ॥१४॥ समुद्र सुष्क हो जाय, आकाश चलायमान हो, नागलोक कंपायमान हो, चंद सूर्य आदि सब ग्रह तेज हीन हों, प्रचंड पवन चले, राजाओंका नाश, मनुष्योंका मरण, वर्षाका विनाश, चक्रावर्तकी तरह यह जगत भ्रमण करे इस प्रकारसे मीनराशि गत शनिका फल गर्गसंहिता में भी कहा है ॥१५॥
"Aho Shrutgyanam"