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________________ মান (१९७) भूमीशाः क्रोधपूर्णा विषधरमुदिताः पक्षिणां सन्निपातः, • सप्त बीपप्रकम्पान्नरपतिमरणं यान्ति मेघा विनाशम् । बैंकल्पाद् याच्यमानाः सकलजनरिपुः सर्वकार्य निहन्ति, . सर्वे ते यान्ति नाशं सकलगुणविधेवृश्चिके सूर्यपुत्रे ।१०॥ सप्त द्वीपाः समुद्राः सकलमुनिवनं वायुपूर्णा धरित्री, विप्रा वेदाङ्गालीना जगति जनसुखं सर्वतो याति सस्यम्। घान्यं चारु प्रभूतं रसकसबहुलं याति धान्यं प्रसारं , सर्वेषां वा जनानां प्रहसति वदनं सूर्यपुत्रे धनस्थे॥११॥ रूप्यं तानं सुवर्ण हयगजवृषभं सूत्रकर्पास मूल्यम् , • सर्वस्मिन् धान्यमानं भवति भुवितले सर्वनाशश्च सस्ये। पृथ्वीशाः क्रोधपूर्णा भवति पथिभयं सर्वरोगाद् विनाशश्चिन्तावस्था नृपाणां भवति सति बले सूर्यपुत्रे मृगस्थे।१२। लक्ष्मी प्राकारसौख्यं धनकणसहितं देशसौख्यं नृपाणां, सब नाश हो, मेघ थोडा बरसे, मनुष्य सुख और धन रहित हों ॥ ६ ॥ वृश्चिकरराशिका शनि हो तो राजाओं क्रोध करें, सर्प प्रसन्न हो, पक्षियोंका युद्ध, सप्त दीप पृथ्वी में भूचलन हों, राजाका मरण, मेघोंका नाश, वचनों में विकल्पता, समस्त लोगमें शत्रुता, सब कार्यका विनाश, तथा समस्त गुणोंका नाश हो ॥ १० ॥ धनराशिका शनि हो तो सात द्वीप, समुद्र, और सब मुनिजनों का वन आदि समस्त पृथ्वी वायुसे पूर्ण हो, ब्राह्मण वेदाध्ययनमें लीन हो, जगतमें मनुष्यों को सुख हो, अनेक प्रकारके तृणकी उत्पत्ति तथा बहुत अच्छा धान्य हो, रसकस अधिक, श्रेष्ठ धान्य हो, सब मनुश्य प्रसन्न वदन हो ॥११॥ मकर राशिका शनि होतो चांदी सोना तांबा हाथी घोडा वृषभ सूत कपास इन सबके भाव तेज हो. धान्य थोडा ही हो, पृथ्वी पर धान्यं का सर्वस्व नाश, राजाओं क्रोवसे पूर्ण हो, मार्ग में भय, रोगसे प्रजाका नाश, और राजाओंको चिन्ता अधिक हो ॥ १२ ॥ कुंभ.. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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