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गुरुवारफलम्
(१६७) कुलस्थकामसूरानं रक्तवस्त्रं महर्घकम् । तथैव गोधूमयवाछत्रभङ्गश्च गौर्जरे ॥१०९॥ मार्गशीर्षे तथा पौषे मञ्जिष्ठाहिंगुमौक्तिकम् ।
जाती पूगीफलं चैव प्रवालानां महर्घता. ॥११॥ ... पतुष्पदादिकास-संग्रहो रसमाषकान् । . . . .
तल्लाभः सप्तमे मासे प्रोक्तो व्यक्तैश्चतुर्गुणः ॥११९॥ मकरराशिस्थगुरुफलम् --- . . . गुरौ मकरगे मेघो जलेन्द्रः पौषक्त्सरः। चतुष्पदक्षयो भूम्यां दुर्भिक्षं निर्जलो जनः ॥११२॥ मार्गशीर्षाद् धान्यवस्तु-संग्रहः क्रियते तदा। विग्रहश्च महाघोरो राज्ञां बुद्धिविपर्ययः ॥११॥ उसरापश्चिमे देशे खण्डवृष्टिः कदापि च । पूर्वस्या दक्षिणे चैव दुर्भिक्षं राजविग्रहः ॥११४॥ पापबुद्धिरतालोका हाहाभूता च मेदिनी। मुजरातमें छत्रभंग हो ॥ १०६ ॥ मागशीर्ष तथा पौषमें मँजीठ हिंग मोती जायफल सुपारी और मूंगे तेज हो ॥ ११० ॥ पशु कपास रस: उर्द पादिका संग्रह करनेसे सातवें मासमें चोगुना लाभ हो ॥ १११ ॥ इति धनराशिस्थगुरुका फल ॥ .. जब मकरराशिका बृहस्पति हो तब पौष संवत्सर कहा जाता, है इस में जलेन्द्र नामका मेव बरसता है , पृथ्वीपर पशुओका विनाश , दुर्मिक्ष और देश निर्जल हो ॥ ११२ !! मार्गशीर्षसे धान्य वस्तुका संग्रह करना श्रेयः है, बडा घोर विग्रह हो, और राजाओंकी बुद्धि विपरीत हो॥ १.१३॥ उत्तर पश्चिमके देशमें कभी खण्डवर्षा हो, पूर्व दक्षिणके देशमें दुर्भिक्ष और राजधिग्रह हो ॥ ११॥ लोग पाप बुद्धिवाले हों पृथ्वीपर हाहाकार से, जल-तेल घी दूध अन्न और लालवस्त्र महँगे हों ।। ११५ ॥ उत्तम
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