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________________ प्राक्कथन प्राचीन जैनाचार्यों ने प्रागम सिद्धान्त, न्याय, व्याकरण काव्य, नाटक, विज्ञान ज्योतिष और वैद्यक आदि सब विषय के साहित्य के अनेक ग्रन्थों की रचना मनुष्य के कल्याण के लिए की है। इनमें से अभी तक कुछ प्रकाशित हो चुके हैं, बाकी भण्डारों में प्राचीन लिपि में लिखे हए मौजूद हैं, ये प्रकाश में लाने की आवश्यकता है, जिसे जनता को विशेष लाभदायक होवे । आजकल आधुनिक वैज्ञानिक विद्वानों ने अनेक प्रकार के यन्त्रों की रचना करके अधिक उन्नति की है, उनमें प्रायः जैन साहित्य से शोधखोज का प्रभाव है। फकत जैन साहित्य में ही भाषा वर्गरणा को पुद्गल माना है, जिससे यह इकट्ठा हो सकता है, इसका अच्छी तरह अध्ययन करके रेडियो प्रादि यन्त्रों की रचना हुई है इत्यादि। वैज्ञानिक लोग चन्द्रमा तक पहुँच गए हैं ऐसा जो प्रचार हुआ है यह कपोल कल्पित है । ये चन्द्रमा तक नहीं पहुँच पाए हैं। पृथ्वी नारंगी के जैसी गोल आकार वाली है, वह अपनी धुरी पर प्रबल बेग से घूम रही है, इत्यादि जो वैज्ञानिक मान्यतायें हैं ये शास्त्र सम्मत नहीं है, विज्ञान स्वयं में अधूरा है, नयी नयी खोजें प्रतिदिन हो रही हैं, उसमें पूराणी वैज्ञानिक मान्यताओं में नवीनता आ रही है, पूर्ण निष्कर्ष किसी भी बात का नहीं हो पाया है। यही बात चन्द्रलोक तक पहुँचने के विषय में है। यदि पृथ्वी घूमती होवे तो पक्षिगण एवं हवाई जहाज अाकाश में उड़ते हैं, वे अपने नियत स्थान पर नहीं सकते हैं। एवं उत्तर में ध्रव तारा शाम के समय जिस स्थान पर दीखता है उसी स्थान पर ही सुबह के समय भी दीखता है, पृथ्वी धूमती होवे तो ध्रुव तारा एक स्थान पर ही कसे दीखे ? इस विषय में श्रीमान् गणिवर श्री अभयसागरजी महाराज विशेष रूप से शोधकार्य करने में संलग्न है, उन्होंने इस विषय का कुछ साहित्य भी प्रकाशित कराया है, अतः इच्छुक महानुभाव को उनसे सम्पर्क स्थापित करके जानकारी करनी चाहिए। सबसे प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ सर्यप्रज्ञप्ति. चन्द्रप्रज्ञप्ति और ज्योतिष करंडकवयन्ता आदि सैद्धान्तिक ग्रन्थों में ग्रह गणित के विषय पर विशद प्रकाश डाला गया है, इसका अच्छी तरह अध्ययन करके जैन पंचांग निर्माण का कार्य करना चाहिए। प्रस्तुत ग्रन्थ प्राचीन कासहृदगच्छीय श्री नरचन्द्रोपाध्याय ने विक्रम सम्बत् १३२३ की साल में स्वोपज्ञवृत्ति सहित जन्मसमुद्र नाम के ग्रन्थ की रचना की है। इसका अध्ययन करने से जन्म कुण्डली देखने का अच्छा अनुभव प्राप्त कर सकता है । इसका हिन्दी अनुवाद पं० भगवादास जैन ने बड़े परिश्रम से किया है, जिसे जन साधारण के लिए सरल एवं सुबोध बन गया है। इनका यह प्रयास अत्यन्त स्तुत्य एवं प्रशंसनीय है । सुज्ञ पाठकगण समुचित लाभ उठावेंगे। बामणवाड़तीर्थ रामनवमी सं० २०३० विजयजिनेन्द्रसुरि "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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