SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ जन्मसमुद्रः जीर्णेत्यादिना प्रतिवेश्म कथनीयम् । अन्यशास्त्रालग्नस्थे वा चतुर्थस्थे वा ग्रहे पूर्वोक्तप्रकारेण गृहं कथ्यम् । अथ गुरौ कर्कस्थे परमोच्चांशभ्रष्टे दशमगते द्विभूमिकम् । उच्चभागेभ्योऽर्वास्थिते त्रिशालं उच्चभागस्थं चतुर्भूमिकगृहम् । अथ गुरौ धनुषि सबले दशमस्थे त्रिशालम् । अथ मिथुनकन्यानामेकतमे दशमस्थे गुरौ द्विशालम् । अत्र जन्मसमुद्र गुरुतः सविशेषं गृहस्वरूपं नोक्तम्, यतः स्वयंकृत जन्मप्रकाशमध्ये कृतमस्ति । तद्यथा-"गुरावुच्चे च खे द्वयादिभूमिकं गृहमीर्यते । बलिन्यस्ते त्रिशालं तु द्विशालं यमले च भे" येन ग्रहेण गृहनिशः कृतः। ततो द्वादशं गृहस्य पश्चिमं स्थानं ततो द्वितीयं गृहांगणं ज्ञेयम् । तत्रस्थेन ग्रहेण तत्रस्थमभिज्ञानं कथ्यम् । तद्यथा-तत्रगते सूर्ये निम्बपिप्पलवटादयोऽन्तः साराः परुषा दुर्गोद्भवाश्च । चन्द्र कूपवापीवाटिकादिजलहरणस्थानं क्षीरफलयुतो वृक्षो वा, भौमे शमी बबूल बदरो वाउलो प्रभृतिकण्टकवृक्षाः। बुधे उत्करवती पुजस्थानं निष्फला वृक्षाः । गुरौ देवगृह सफलो वृक्षः । शुक्रे चन्द्रवज्जलस्थानं पुष्पफलयुतो वृक्षो वा। एवं शनौ राहौ च गर्ताः। तेन ग्रहेण सर्वमिदं पुस्त्रीनामक कथ्यम् । तेन नीचस्थेन शत्रुक्र्रराशिस्थेन शुष्कं भग्नं कुरुपं पूर्वोक्त वाच्यम् । शुभे शुभदृष्टे स्वः उच्चे परमोच्चे उदिते पुष्ठं श्रेष्ठमभग्नं वाच्यम् । एतदभिज्ञानादिकं स्वकीय जन्मप्रकाशादानीय व्याख्यातम् ।।१५।। दश स्थान में जो बलवान ग्रह हो उसके अनुसार गृहस्थिति कहना । जैसे-बलवान शनि हो तो जीणं लकड़ी के घर में, रवि बलवान हो तो जीर्ण घर में, चन्द्रमा बलवान हो तो नवीन घर में, मंगल बलवान हो तो जले हुए घर में, बुध हो तो चित्रविचित्र घर में, गुरु हो तो मजबूत घर में और शुक्र बलवान हो तो उत्तम घर में जन्म कहना। अपना जन्म प्रकाश ग्रंथ में कहा है कि-उपरोक्त फल कोई बलवान ग्रह लग्न में या चतुर्थ स्थान में रहा हो तो जानना, गुरु कर्क राशि में हो परन्तु उच्च प्रश का न हो और दशवें स्थान में रहा हो तो दो मजला मकान, उच्चांश के पूर्वाद्ध में हो तो तीन मंजला वाला और परम उच्च का हो तो प्रसुति मकान चार मजलावाला कहना । धनराशि का गुरु बलवान होकर दशव स्थान में रहा हो तो जन्म स्थान तीन शाला वाला था । मिथुन या कन्या का गुरु यदि दशम स्थान में रहा हो तो दो शालावाला मकान कहना । जिस ग्रह से घर का निर्माण किया हो उसके बारहवें स्थान से पश्चिम भाग और दूसरे स्थान से घर का अंगन जानना। इसमें यदि बलवान सूर्य हो तो उस स्थान पर निब, पिप्पल, वड़ आदि के वृक्ष है। चंद्रमा हो तो कुप्रां, बावड़ी बगीचा आदि जलस्थान या दूधवाले फली वृक्ष कहना। मंगल हो तो शमी बकुल और बोर आदि कांटेवाले वृक्ष कहना। बुध हो तो बिना फल के वृक्ष कहना। गुरु हो तो देवघर या फलवाले वृक्ष कहना। शुक्र हो तो अच्छे जलवाला स्थान तथा पुष्प और फलवाला स्थान कहना। शनि या राहु हो तो वह स्थान खड्ड वाला कहना। उपरोक्त ग्रह यदि नीच "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy