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प्रथम कल्लोलः
लग्नात् प्रश्नलग्नाज्जन्म लग्नाद् वा यद्वा इन्दोरचन्द्राद्वा यो भावस्तन्वादिकः स स्वामिना अथवा शुभैर्ग्रहैर्युतोऽथवा दृष्टो भवति, तस्य तस्य भावस्याप्ति प्राप्ति प्राहुः । क्व जन्मनि जन्मलग्ने प्रश्न लग्ने वा तस्य तस्य भावस्य लाभो भवतीत्यर्थः । अक्रमे विपर्यये सति न प्राप्तिर्भवति, यो भावः स्वामिना शुभग्रहैश्च युतो दृष्टो वा न भवति, शत्रुरणा पापैर्नीचेनैव युतो दृष्टो वा भवति तस्य प्राप्ति र्न भवतीत्यर्थः ॥३॥
अब शास्त्र के प्रारम्भ में लग्न प्रादि बारह भावों के लाभालाभ का सर्व व्यापक ज्ञान बतलाते हैं- प्रश्न- लग्न से अथवा जन्म लग्न से तथा चन्द्रमा से प्रारम्भ करके जो-जो भाव अपने स्वामी से अथवा शुभ ग्रहों से युक्त हो, अथवा देखा जाता हो तो उस उस भाव की जन्म में प्राप्ति होती है, अर्थात् उस-उस भाव के फल का लाभ होता है । परन्तु उससे विपरीत हो अर्थात् जो भाव अपने स्वामी से अथवा शुभ ग्रहों से युक्त न हो और देखा गया भी न हो तो उस भाव का फल नहीं मिलता एवं जो भाव शत्रु ग्रहों से, पाप ग्रहों से या नीच ग्रहों से युक्त हो या देखा जाता हो तो भी उस भाव का फल नहीं मिलता ॥३॥
अथ गर्भस्वरूपो नाम कल्लोलो व्याख्यायते, तत्रादौ गर्भसम्भवासम्भवज्ञानमाह-शुक्रार्कारिन्दुभिः स्वांशे द्वाभ्यां चेषां क्रमाद् भवेत् । पुस्त्रीभोपचयस्थाभ्यां गर्भो वेज्येऽङ्गकोणगे ॥४॥
'शुक्रार्का रेन्दुभिः' शुक्र सूर्य कुज चन्द्रः स्वांशे यत्र तत्र राशौ स्वस्वनवांशस्थैरुपचयस्थैर्वा कृत्वा गर्भप्रश्ने सति गर्भो भवेत् गर्भो भविष्यतीति ज्ञेयम् । अथवा एषां प्रश्ने शुक्रार्कारेन्दूनां मध्याद् 'द्वाभ्यां' शुक्रार्काभ्यां भौमचन्द्राभ्यां स्वांशे वर्त्तमानाभ्यामेव क्रमात् 'पु ंस्त्रोभोपचयस्थाभ्यां' सद्भ्यां पुसः पुरुषस्य यानि भानि राशयः मेषमिथुनसिंहतुलाधनुःकुम्भाख्यास्तेभ्य - स्त्रिषडेकादशदशमस्थाभ्यां शुक्रार्काभ्यां स्वांशस्थाभ्यां च शब्दाद् गर्भो भवेत् । एवं स्त्रीराशिभ्यो वृषकर्ककन्या वृश्चिकमकरमीनेभ्य उपचयस्थाभ्यां भौमचन्द्राभ्यां स्वांशस्थाभ्यां गर्भो भवेत् । परन्तु वन्ध्याशिशुवृद्धातुराभ्यो विनेति ज्ञेयम् । वा इज्ये गुरौ अंगकोणगे लग्ने पञ्चमे नवस्थे वा सति गर्भो भवेत् । शास्त्रान्तरात् सुते निर्बले सक्रूरेऽथवा सुतनाथे सक्रूरेऽस्तनीचगे वा गर्भो न भवेद् ध्रुवम्, सबले भवत्येव ॥ ४ ॥
अब गर्भस्वरूप नाम के प्रथम कल्लोल की व्याख्या करते हैं, उसमें प्रथम गर्भ का होने न होने का योग बतलाते हैं - गर्भ के प्रश्न लग्न समय यदि सूर्य, चन्द्रमा, मंगल और शुक्र ये चारों ग्रह चाहे किसी राशि में हों, परन्तु अपने २ नवमांश में हों और उपचय (३-६-१०-११) स्थान में रहे हों तो गर्भ का होना कहना । अब दूसरा योग यह है कि शुक्र और रवि ये दोनों ग्रह पुरुष संज्ञक राशियों में अर्थात् मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धन
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