SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. प्रश्नशतक:-जन्मसमुद्र की बेड़ा नाम की लघुभगिनी नाम की स्वोपज्ञ वृत्ति समेत विक्रम सम्वत् १३२४ की साल में रचा है। इसका दूसरा नाम 'ज्ञानदीपिका' है। इसमें सात प्रकाश हैं । प्रथम प्रकाश में लग्न और ग्रहों का स्पष्टीकरण तथा इनके षड्वर्ग से प्रश्न का निर्णय किया है। दूसरे प्रकाश में-पृच्छक के सुख दुःखादि प्रश्नों का निरूपण है। तीसरे प्रकाश में नष्ट अथवा विस्मृत वस्तु का लाभालाभ, क्रयारणकादि से अर्थ लाभ, स्वपदादि प्राप्ति, संतान प्राप्ति इत्यादि लाभालाभ के प्रश्न प्रकाश में-गमनागमन के प्रश्नोत्तर हैं। पांचवें प्रकाश में-वाद विवाद युद्धादि के प्रश्न हैं। छठे प्रकाश में-रोग सम्बन्धी और बंदी मोक्ष आदि के प्रश्नोत्तर हैं। सातवें प्रकाश में-वृष्ट्यादि और वर्तमान दिवस सम्बन्धी प्रश्न हैं। इसके अंतिम श्लोक में स्वरचित ग्रन्थों के नाम अकित किए हैं : "जन्प्रकाशं कवित्वलेशं, प्रश्नप्रकाशं नरचंद्रनामा। योऽध्यापकः प्रश्नशतं स चक्रे, काश हृदो जन्मसमुद्रवृत्तिः॥" ३. जन्मप्रकाश :-यह जन्मकुण्डली के शुभाशुभ फलादेश का ग्रन्थ है, ऐसा जन्मसमुद्र में पाये हुये प्रमारणों से मालुम होता है। ४. प्रश्नप्रकाश :-यह जन्मलग्न अथवा तात्कालिक लग्न से प्रश्नों के फलादेश का करने का ग्रन्थ है, ऐसा प्रश्नशतक ग्रन्थ में आये हुये प्रमाणों से मालूम होता है। ५. प्रश्नचतुविशतिका :-यह फकत २४ श्लोक प्रमाण ग्रंथ है । इसके ऊपर साधुराज महोपाध्यायाधिराज कृत अवचूरी वाली प्राचीन प्रति बीकानेर से साक्षररत्न सेठ अगरचंदजी नाहटा ने स्वसंग्रहित श्री अभय जैन ग्रंथालय से जन्मसमुद्र ग्रंथ के परिशिष्ट में छपवाने के लिये भेजी थी। इस ग्रंथ की प्राचीन एक प्रति बीकानेर राज्य की अनूपकूमारी लायब्ररी से मिली थी, उसकी नकल करके और हिन्दी अनुवाद करके आपके समक्ष उपस्थित करने का साहस किया है। इसमें कोई जगह त्रुटी (भूल) रह जाने की सम्भावना है। यह देखने में आवे तो सुधार करके पढ़ने की कृपा करेंगे, ऐसी अाशा रखता हूँ। इस ग्रंथ को प्रकाशित करने का श्रेय श्रीमान् पूज्यपाद सुविहित जैनाचार्य श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब ने विक्रम सम्वत् २०२८ में भरूच (भृ नगर (गुजरात) में चातुर्मास किया था, उस समय उनके सदुपदेश से भरूच (गुजरात) बेजलपर वीशापोरवाल अाराधना भवन (जैन संघ) को है, धन्यवाद के पात्र हैं। ] सम्वत् २०३० अक्षय तृतीया शनिवार जयपुर सिटी-३ भगवानदास जैन "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy