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कालिकाचार्यकथा |
अब्धिर्लब्धिकदम्बकस्य तिलको नि[:]शेषसूर्यावलेपतिबोधनैपुणवतामग्रेस् (स) रो वाग्मिनाम् ।
दृष्टान्तो गुरुभक्तिसा (शा) लिमनसां मौलिस्तपः श्रीजुषां, सर्वाश्चर्यमय महि(ही) समय: श्रीगौतमः स्तान्मुदे ||८|| +
अत भगवंत श्रीमहावीरदेव सासनाधीश्वर, तेहनइ सासन लौकिक लोकोत्तर पर्वमाहि श्रीपर्युषण पर्व राजाधिराजा deas समागमनि श्रीकलि (ल्प ) स ( सिद्धांतनी वाचना भणा (णी ) इ | तिहां त्रिहि अधिकार जाणिवा । जिनकल्प थियरकप सामाचारीकल्प ए त्रिहुमाहि जिनकल्पनी वाचना छए वाचनाए परिपूर्ण हुई । तर शिवरनइ अधिकारि मोटा प्रभावक श्रीकालिकाचास्यि पणि हुथा । जेह भगवंते भगवंतना वाचनानइ अनुसार पांचमि हुंतीए पर्वराजाधिराज चउथिनइ दिवस आणु । श्रीसातवाहन राजाना आग्रह लगी । तेह भगइ कालिकाचार्य थिवरनुं चरित्र वखाणि । तउ हुं पणि अमुक उपाध्याय आचारिय वाणारोसना आदेस लगी श्रीसंघ आगलि वखाणि । ते चरित्र कवीश्वर कुणए करी ते लिखा || नमिऊण वीरनाई, हयदुहदाहं च अइसयसणाहं । मणिमो कालिगसुरीण, सुयानुसारेण सचरियं ॥१॥
व्याख्या- श्रीमहावीर देव नभ्य (म )स्करी श्रीकालिकाचार्य [न]] प्रधान चरित्र भणिसु- वखाणि । श्रुतानुसारइ-जिम सिद्धांत प्रकरणमाह कहा छह, तिम कहां छन् । श्रीमहावीर देव हृत मणीइ हांणां (हण्यां) छह, जेह दुख्य समस्त मनस्ताप - संताप आधि-व्याधि-रोग-सोग चउत्रीस अतिसय पइत्रीस वचनातिसयसंयुक्त। एहवा श्रीमहावीर वर्द्धमानस्वामीनइ प्रणाम करी ए चरित्र वखाणीसइ ||१||
पंचमीओ चडथी (त्थी ) ए, जेण पजु ( ज्जु) सणा कया । तेर्सि पभावगाणं, चरियं भणिमो सुरि (र) सकलियं ॥२॥
-- नेहे भगवंते पांचम हुंती पर्युपणापर्व चउथिनइ दिवस कीधा कारण विशेषि, ते प्रभा[व]क शिरोमणिना चरित्र ।
छए रसे संकलित कहीयइ छ । ते भगवंत कुण देस हुया ते कवि कहइ छह ॥२॥
aforce भरवासे,
धारावास (सा) भिरं पुरं ।
tet परिक (रक्क) मी तत्थ, बारसं (सिं) यो नराहिवो ||३||
- ए भरतक्षेत्र पांचस छवोस छ कला प्रमाण । तेहमाहि धारावास इस नाम नगर । तिहां बलिष्ठ पराक्रमी वज्रसिंह राजा राज प्रतिपालइ ||३||
सीलाइगुणसयाधारा, रुवेण सुरसुंदरी ।
सुरसुंदरिप्पिया तस (स्स), वप्पुसो काळिगाभिहो ||४||
--- ते वज्रसिंह राजानइ सुरसुंदरी नामे पट्टरानी प्रवर्त्तइ | केवी ते ! खुसीला - सुविनय सुविचार सुरूप सुवचन साकार मर्यादा प्रमुख स्त्रीना गुण शत तेहनी आधार स्थानक | रूपि हसित देवा[ना]समूह, पहवी सुरसुंदरी । कुक्षिशुक्तिमुक्ताफल समान श्री कालिककुमर इणि नाम पुत्र प्रवर्त्तइ ||४||
भग (गिणी सरस ( स ) ई सो य, वढ्ढमाणो दिणे दिने । कमेण जुव (व्व) णं पत्तो, कलासागरपारगो ॥५॥
-- ते श्रीकालिककुमरन बहिन सरस्वती इणइ नाम जाणवी । ते संयुक्त दिनि दिनि पंचविध धावमात्रजने लालमान पाल्यमान त कुमर स्मरक्रीडाभवन नवयौवन पाम्यउ । अनेक शास्त्रकला रूप जे समुद्र तेहनउ पारगामी ॥५॥
+ प्रक्षिप्तमेतच्छलोकाष्टकमाभाति ।
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"Aho Shrutgyanam"