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मलघारिश्रीहेमचन्द्रसूरिविरचिता
सगपत्थिदेहिं विसया ताडिओ भ्रमइ तो इम्रो दीणो । संसारं च अनंत, भमिही तम्मदोसेण ॥६९॥ अह जस्स साहिणो, पढममेव सूरी ठिओ पुरवरम्मि । सो उज्जेणीराया, जाओ सेसा उ सामंता ॥७०॥ आलोइयपडिता, भगिणी सूरीहिं संजमे ठविया । सकुलाओ पत त्ति ते य सगपत्थिवा जाया ॥ ७१ ॥ treasureraणपरम्मि अह सगनरिंदवंसम्म । बहते तो कालंतरेण सिरि विकमाइचो || ७२॥ सगवंसं इणिकणं, जाओ राया कओ जणो निरिणो । संच्छरो य नियओ, एस पयट्टाविओ जेण ॥७३॥ तस्स वि वंसं उप्पाडिऊण जाओ पुणोवि सगराया । पणतीसे वाससए (१३५), विक्रमका वस्सते ॥७४॥ परिवत्तिऊण जेणं, लोए संवच्छरो निओ उवि । कालगसूरी उण लाड विसय- भरुयच्छप मुहेसु ॥७५॥ ( २ )
ठाणे विहरमाणो, पत्तो का पइद्वाणम्मि | तत्थ य राया सिरिसालवाहणो साओ परमो ॥७६॥ सूरीण कुणइ गरुयं, भत्तिं तत्थ विय भद्द्वयमासे । सुद्धा पंचमी इंदमहो वह तो राया ॥७७॥ विणरण भणइ सूरिं, पज्जोसवर्ण करेह छट्टीए । जं पंचमीप लोयाणुवित्तिनिरयस्स मह पूया ॥७८॥ काव्वा होइ न चेइयाण लैरी वि भणइ न कयाह । पोसवणा पंचमिरयणिमइकमइ नरनाह ! || ७९॥ * तो भगवया भणिअं—
(१) इत्थं य पणगं पणगं, कारणियं जा सवसई मासो । सुद्धदसमीहियाणं, आसाठी पुन्निमोसरणं ॥ ८० ॥ (२) चाउम्मासुकोसो, सत्तरिराईदिया जहन्नो य । थेराण जिणाणं पुण, नियमा उक्कोसओ चैव ॥ ८१ ॥ (३) इत्थ य अगभिग्गहियं, सीसइ राई सवसई मासो । ते परमभिग्राहियं गिहिनायं कित्तियं जात्र ॥८२॥ ( ४ ) इय सत्तरी जहन्ना, असीनउई वीसुतरसयं च । जर वासइ मग्गसिरे, दस राया तिनि
चकोसा ॥ ८३ ॥
४ बढ़तमि का M ४८ * पुराणे, M
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"Aho Shrutgyanam"