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________________ क्रिया - कोश १६ विभिन्न क्रियाओं का विवेचन ३१ कहते हैं । अतः कर्मबन्ध के क्रियाएँ भी होनी चाहिये । मिलता है । 'समवायांग' में 'ठाणांग' में एक भेद, दो [ सामान्यतः कर्मवन्ध के निबन्धभूत कार्यों को क्रिया निवन्वभूत जितने भी कार्य हो सकते हैं उतने ही प्रकार की आगमों में क्रियाओं के समग्र भेदों का एकत्र वर्णन नहीं 'किरिया' तथा 'अकिरिया' के एक-एक भेद का वर्णन है । भेद, तीन भेद तथा पाँच भेद करके वर्णन मिलता है | 'ठाणांग' तथा 'तत्त्वार्थसूत्र' में पाँच भेद करके पाँच पंचक मिलते हैं । 'वण्णवणा' तथा 'भगवई' में दो पंचक्रों ( काइया तथा आरंभिया ) का विवेचन मिलता है । 'समवायांग' में सिर्फ एक काइया पंचक का नामकरण मिलता है । 'सूपगडांग' तथा 'समवायांग' में 'किरियाठाण' के नाम से तेरह कियास्थानों का वर्णन मिलता है । 'भगवई', 'पण्णवणा' तथा अन्यत्र अठारह 'पापस्थान' का कियारूप में वर्णन मिलता है । अन्यत्र भी कुछ क्रियाओं का अलग से विवेचन मिलता है । इन क्रियाओं का हमने अलग-अलग विवेचन किया है तथा जहाँ द्वयक और पंचक के रूप में विवेचन है, वहाँ द्वयक और पंचक के रूप में भी विवेचन किया है । 'पापठाण' क्रियाओं का विवेचन सम्मिलित रूप में तथा अलग भी किया है। क्रियाओं का अनुक्रम हमने अकारादि क्रम से न करके इस प्रकार किया है -- प्रथम, जीव-अजीव दो क्रियाओं को लिया है । तत्पश्चात् क्रमशः पाँच पंचक की पचीस क्रियाओं को लिया है। पचीस क्रियाओं के शेष में 'इरियावहिया' किया के रहने से उसके युगल ' संपराइया' क्रिया को लिया है । तत्पश्चात् 'सम्मत्त-मिच्छत्त' युगल को लिया है । मिच्छत्त क्रिया के भेद होने के कारण तत्पश्चात् 'अकिरिया' तथा 'अण्णाण लिया है । क्रिया को उसके बाद तेरह क्रियास्थानों में जो क्रियाएँ पचीस क्रियाओं में नहीं आयी हैं उनको लिया है । 'हिंसा दंडवत्तिए' को हमने 'पाणाइवाय' क्रिया में नहीं लिया है ! क्रियास्थान की क्रियाओं के बाद 'पापठाण' की अवशिष्ट क्रियाओं को लिया है। सर्व शेष में 'एयण' ( कंपन- परिस्पंदन ) क्रिया को लिया है । क्रियाओं की परिभाषाएँ हमें आगमों में बहुत ही कम मिलीं । अतः हमने स्थानस्थान पर टीकाकारों की परिभाषाएँ संकलित की हैं । क्रिया का अर्थ जहाँ कर्म को काटने के साधनरूप में लिया गया है वहाँ हमने अलग विवेचन किया है । क्रियावाद, अक्रियावाद, अक्रिया तथा अन्तक्रिया का अन्यत्र ( देखो ·६२.४, १२५, ७२ तथा ७३ ) विवेचन किया T] " Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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