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क्रिया-कोश ०७.५ तेरह भेद ( क्रियास्थान )
(क) तेसिं वि य णं इमाइ तेरस किरियाठाणाई भवंतीतिमक्खायं ; तंजहाअट्ठादंडे, अणहादंडे, हिंसादंडे, अकम्हादंडे, दिद्विविपरियासियादंडे, मोसवत्तिए, अदिन्नादाणवत्तिए, अज्झत्थवत्तिए, माणवत्तिए, मित्तदोसवत्तिए, मायावत्तिए, लोभवत्तिए, इरियावहिए।
-सूय० श्रु २ । अ २ । सू १ ! पृ० १४५ (ख तेरस किरियाठाणा पन्नत्ता, तंजहा अट्ठादंडे, अणहादंडे, हिंसादंडे, अकम्हादंडे. दिट्ठिविररिआसियादंडे, मुसावायवत्तिए, अदिन्नादाणवत्तिए, अझथिए, मानवत्तिय, मित्तदोसवत्तिए, मायावत्तिर, लोभवत्तिर, इरियावहिए नामं तेरसमे ।
-सम० सम १३ । सू १३ । घृ० ३२६ (ग) से बेमि जे य अईया जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा, अरिहंता भगवन्ता, सत्वे ते एयाई चेव तेरस किरियाणाई भास्सुि वा भासेंति वा भासिस्संति वा पन्नविंसु वा पन्नवेति वा पन्नविस्संति वा एवं चेव तेरसमं किरियाणं सेविंसु वा सेवंति वा सेविस्संति वा ।
-सूय० २ । अ२ । सू १४ 1 पृ० १४६ क्रियास्थान तेरह हैं----अर्थदण्ड, अनर्थदण्ड, हिंसादण्ड, अकस्मात् दण्ड, दृष्टिदोषदण्ड, मृपा प्रत्ययिक, अदत्तादानप्रत्ययिक, अध्यात्म ( मन ) प्रत्ययिक, मानप्रत्ययिक, मित्रद्वेषप्रत्ययिक, मायाप्रत्ययिक, लोभप्रत्ययिक तथा ऐपिथिक ।
अतीत के, वर्तमान के तथा भविष्यत् के सभी अरिहंत भगवंतों ने इन तेरह कियास्थानों का कथन तथा प्रतिपादन किया है, करते हैं और करेंगे। तेरहवें क्रियास्थान का सेवन अतीत के अरिहन्तों ने किया है, वर्तमान के अरिहन्त करते हैं, तथा भविध्यत् के अरिहंत करेंगे।
उपर्यक क्रियाओं के उपभेदों का वर्णन हमने इन क्रियाओं के व्यक्तिगत विवेचन में लिया है (देग्ने ११६) ०७.६ अठारह भेद (पापस्थान)
अस्थि णं भंते। जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ ! हंता गोयमा ! अस्थि: xxxi अस्थि गं भंते ! जीवाणं मुसावायेणं किरिया कन्जइ ! हंता अत्थि। xxx । अस्थि णं भंते ! जीवाणं अदिन्नादाणेणं किरिया कजइ ! हंता ! अस्थि । xxx ! अत्थि भंते । जीवाणं मेहुगणं किरिया कज्ज३ । हता! अस्थि । xxx । अस्थि णं भंते । जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्ज ! हता! अस्थि । xxx । एवं कोहेणं,माणेणं, मायाए, लोभेणं, पेज्जेणं, दोसे, कलहेणं, अभक्खाणेणं, पेसुन्नेणं, परपरिवारणं, अरइरईए, मायामोसेणं, मिथ्यादसणसल्लेणं ।।
-- पपण० प२२ । सू १५७४, १५७६-८० । पृ० ४७६
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