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________________ १४ क्रिया-कोश षण है अर्थात् क्रिया क्या है, कौन हेय है, कौन उपादेय है, कौन करणीय है, कौन अकरणीय है इत्यादि विषयों के वे निपुण जानकार थे। अतः उनको क्रियाकुशल कहा गया है । क्रियाकुशल उस व्यक्ति को कहते हैं जो क्रिया के सम्बन्ध में प्रवीण ज्ञाता हो। (देखो राय। सू १५१। पृ० ७६) .०४.२७ किरियाठाण-क्रियास्थान ---सूय ० श्रु २१ अ । सू ११ पृ० १४५ जिन स्थानों में जीव के क्रिया होती है अर्थात् कर्मबंध होता है वे क्रियास्थान है । क्रियास्थान १३ हैं । सामान्यतः इनके दो विभाग हैं-उपशान्त-धर्म और अनुपाशान्तअधर्म । अधर्म-अनुपशान्त विभाग में अर्थदंडादि १२ क्रियास्थान आते हैं। धर्म-उपशांत विभाग में केवल एक ऐापथिक कियास्थान आता है । बारह क्रियास्थान में गमन करता हुआ जीव मोक्ष को प्राप्त नहीं होता है तथा ऐपिथिक क्रियास्थान में गमन करता हुआ जीव मोक्ष को प्राप्त करता है । देखो क्रियास्थान .०४.२८ किरियाणं ( अणच्चासायणाविणए ) -उव० सू २०, पृ० ११ ‘क्रियावान'-क्रिया-तपस्या-विशिष्ट तपस्या करने वाले संयमी की अशातना नहीं करना-अनत्याशातनाविनय के पैंतालीस भेदों में से एक भेद है। .०४.२६ किरियानय--- क्रियानय अभिधा० भाग ३ | पृ० ५५४ क्रियानय कहता है कि मोक्ष की साधना में क्रिया ही प्रधान है। क्रियानय दर्शन में क्रिया को प्रधान माना जाता है तथा ज्ञान को गौण माना जाता है । ०४.३० किरियाभावरुई.-- क्रियाभावरुचि -उत्त० अ २८। गा २५। पृ. १०२६ दर्शन-ज्ञान चारित्र-तप-विनय-सत्य-समिति और गुप्ति आदि सदनुष्ठानिक क्रियाओं में द्रव्यरुचि के विपरीत भावरुचि होती है वह क्रियाभावरुचि है ।। द्रव्यरुचि में केवल द्रव्यरूप अर्थात् वाह्य रूप से इन क्रियाओं का अनुष्ठान होता है । भावरुचि में मन-वचन-काया-तीनों से इन क्रियाओं का अनुष्ठान होता है तथा इन क्रियाओं में श्रद्धा भी होती है। .०४.३१ किरियारुई-क्रियारुचि . मूल-दसणनाणचरित्ते, तवविणएसञ्चसमिइगुत्तीसु । जो किरियाभावरुई, सो खलु किरियाई नाम || - उत्त• अ २८। गा २५/ पृ० १०२६ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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