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________________ क्रिया-कोश उत्तर शरीर से होने वाली गमनादि क्रिया-उत्तरक्रिया। यथा--वायुकाय का मूल शरीर औदारिक है और उत्तर शरीर वैक्रिय है। वायुकाय का उत्तर शरीर-वैक्रिय शरीर द्वारा की गई गमनादि क्रिया को उत्तर क्रिया कहते हैं । .०४.१६ उपायकिरिया-उपाय क्रिया -सूय० श्रु २१ अ । सू १ नि । गा टोका-उपायक्रिया तु घटादिकं द्रव्यं येनोपायेन क्रियते । तद्यथा मृत्खननमर्दनचक्रारोपणदंडचक्रसलिलकुंभकारव्यापार्यावद्भिरूपायः क्रियते सा सर्वोपायक्रिया। घटादिक द्रव्यों को किसी उपाय से बनाना-उपाय क्रिया। यथा-मिट्टी को खोदना, मर्दन करना, चक्र में आरोपण करना, दण्ड-चक्रसे स्वरूप बनाना, जल का उपयोग करना-ये सब कंभकार के व्यापार (नियति से नहीं) उपाय से होते हैं अतः वे सब उपाय. क्रिया हैं। .०४.२० उवट्ठाणकिरिया - उपस्थानक्रिया -आया. श्रु २। अ२। उ २। सू ३५। पृ० ५४ किसी एक स्थान में कल्पकाल व्यतीत करने के वाद उसी स्थान में दो मास या दो चातुर्मास का व्यवधान किये बिना वापस आकर रहने से साधु को उपस्थानक्रिया होती है । -देखो भिक्षु और क्रिया ०४.२१ कयकिरिए–कृतक्रिया -आया० श्रु ११ अ५। उ ४। सू ८७। पृ० १८ मूल · से णो काहिए, जो पासणिए, णो संपसारए, णो समाए, णो कयकिरिए XXXI टीका--णो कयकिरिए- कृतातुष्टितातदुपकारिणी मंडनादिका क्रिया येन स कृतक्रिय इत्येवंभूतो न भूयान्न स्त्रीणां वैयावृत्त्यं कुर्यात्काययोगनिरोध इति भावः।। किसी को सेवा-वैयावृत्त्य आदि के द्वारा तुष्ट करना--विशेष करके काययोग से । "आयारांग' में नारी सम्बन्धी प्रसंग रहने से वैयावृत्त्य आदि से उनको संतुष्ट करना ऐसा अर्थ किया गया है। शीलांगाचार्य ने "णो कयकिरिए" का भाव "काययोगनिरोध" कहा है। .०४.२२ कयकिरिए -- कृतक्रिया --सूय० श्रु १। अ २। उ २। गा २८ पृ० १०७ मूल--णचा धम्म अणुत्तरं, कयकिरिए ण यावि मामए । अपनी सक्रिया में दत्तचित्त होना-कृतक्रिया । 'सूयगडांग' में "कयकिरिए" की शीलांगाचार्य ने निम्न प्रकार से टीका की है। "कृता स्वभ्यस्ता क्रिया संयमानुष्ठानरूपा येन स कृतक्रियः ।" जो संयमानुष्ठानरूप क्रिया में प्रवृत्त हो वह कृत क्रिय । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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