________________
अंगुत्तरनिकाय में निरंगंठ नाययुत्त को क्रियावादी कहा है तथा अपने को क्रियावादीअक्रियावादी दोनों कहा है । यह भी बौद्ध धर्म के मध्यम मार्ग का एक लक्षण है । सूत्रकृतांग में क्रियावादी की एक सुन्दर परिभाषा है ।
जो अधोगति के
जो जीव आत्मा को जानता है और लोक को जानता है; जो संसार परिभ्रमण रूप गति और स्थिरता - परिभ्रमण से मोक्ष रूप आगति को जानता है; जो शाश्वत तथा अशाश्वत भावों को जानता है; जो जन्म-मरण - उपपात को जानता है, दुःखों को जानकर जगत के सुख-दुःख को जानता है ; जो कर्मों के आस्रव - आगमन क्रिया तथा कर्मों के संवर --- आगमन के निरोध को जानता है ; दुःखादि वेदना रूप कर्म के फलों को जानता है तथा कर्म काटने की क्रिया रूप निर्जरा को जानता है वही क्रियावाद का सही कथन प्रतिपादन कर सकता है - वही क्रियावादी हो सकता है। ऐसा जीव सम्यग्दृष्टि क्रियावादी होता है ।
जो जीव किसी एक एकांत दृष्टि से क्रिया की आवश्यकता स्वीकार करते हैं, अथवा तत्त्व के किसी एक पक्ष को स्वीकार करके क्रिया को स्वीकार करते हैं वे मिथ्यादृष्टि क्रियावादी हैं । जो जीव किसी भी कारण से कर्म काटने रूप क्रिया तथा पापकर्म के के बन्धन रूप अक्रिया को अस्वीकार करते हैं वे अक्रियावादी हैं । अक्रियावादी क्रिया
अक्रिया दोनों को अस्वीकार करते हैं ।
जाटावास, जोधपुर
विजयादशमी, वि० सं० २०२६
[ 45 ]
"Aho Shrutgyanam"
-जबरमल भण्डारी