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क्रिया-कौश
परियायो, येन मं परियायेन सम्मा वदमानो वदेय्य - 'किरियवादो समणो गोतमो, किरियाय धम्मं देखेति, तेन च सावके विनेती' ति । ××× 1
-- अंगुत्तरनिकाय । निपात ८ । २ महावग्गो । २ सीह सुत्त (निर्ग्रन्थ श्रावक ) सिंह सेनापति निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र के पास गये और जाकर निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र से बोले – “भन्ते ! मैं श्रमण गौतम का दर्शन करने जाने की इच्छा करता हूँ ।" (निर्ग्रन्थ ज्ञात पुत्र ) “हे सिंह ! तुम क्रियावादी हो, तुम क्या उस अक्रियावादी श्रमण गौतम के दर्शनार्थ जाओगे ? हे सिंह ! श्रमण गौतम अक्रियाबादी है । वह अक्रिया का धर्मोपदेश देता है और उसीका अपने शिष्यों को अभ्यास कराता है। XXX ।"
तत्पश्चात् एक दिन सिंह सेनापति जहाँ भगवान गौतम थे वहाँ पहुँचे । पास जाकर भगवान को नमस्कार कर एक ओर बैठे। एक ओर बैठे हुए सिंह सेनापति ने भगवान से कहा - " भन्ते ! मैंने सुना कि श्रमण गौतम अक्रियावादी है, अक्रियावाद की ही देशना करता है तथा अपने श्रावकों को भी अक्रियावाद का ही अभ्यास कराता है ।"
"सिंह ! एक दृष्टि है जिससे मेरे बारे में ठीक-ठीक कहने वाला यह कह सकता है कि श्रमण गौतम अक्रियावादी है, अक्रियावाद की ही देशना करता है और अपने श्रावकों को अक्रियावाद का ही अभ्यास कराता है। सिंह ! (दूसरी ) एक दृष्टि है जिससे मेरे बारे में ठीक-ठीक कहने वाला यह कह सकता है कि श्रमण गौतम क्रियावादी है, क्रियावाद की ही देशना करता है, तथा अपने श्रावकों को भी क्रियावाद का ही अभ्यास कराता है। XXX।” सिंह ! एक दृष्टि है जिससे मेरे बारे में ठीक-ठीक कहने वाला यह कह सकता है कि श्रमण गौतम अक्रियावादी है, अक्रियावाद की देशना करता है तथा अक्रियावाद का ही अपने श्रावकों को अभ्यास कराता है। सिंह ! (क्योंकि) मैं शारीरिक दुश्चरित्रता, वाणी की दुश्चरित्रता तथा मन की दुश्चरित्रता न करने की बात करता हूँ तथा नाना प्रकार के पापकर्मों के न करने की बात करता हूँ । अतः, सिंह ! इस दृष्टि से मेरे बारे में ठीक-ठीक कहने वाला कह सकता है कि श्रमण गौतम अक्रियावादी है, अक्रियावाद की देशता करता है, तथा अक्रियावाद का ही अपने श्रावकों को अभ्यास कराता है। सिंह ! ( दूसरी) एक दृष्टि है जिससे मेरे बारे में ठीक-ठीक कहने वाला यह कह सकता है कि श्रमण गौतम क्रियावादी है, क्रियावादी की देशना करता है तथा क्रियावाद का ही अपने श्रावकों को अभ्यास कराता है। सिंह ! (क्योंकि) मैं शारीरिक सुचरित्रता, वाणी को सुचरित्रता तथा मन की सुचरित्रता की बात करता हूँ तथा अनेक प्रकार के कुशल कर्म करने को कहता हूँ । अतः, सिंह ! इस दृष्टि से मेरे बारे में ठीक-ठीक कहने वाला कह सकता है कि श्रमण गौतम क्रियावादी है, क्रियावाद की देशना करता है, तथा क्रियावाद का ही अपने श्रावकों को अभ्यास कराता है ।
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"Aho Shrutgyanam"