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क्रिया-कोश - यहाँ आगे भावप्रत्याख्यान का अधिकार है, यह बताने के लिए अगली गाथा , कही है--
मूलगुणेसु य पगयं पञ्चक्खाणे इहं अहिगारो । होज्ज हु तप्पश्चइया, अप्पञ्चक्खाणकिरिया उ॥
-सूय० नि गा १०६-८० मूल गुणों में प्रत्याख्यान का यह प्रकृत अधिकार है। अत: उस (प्रत्याख्यान के अभाव के ) कारण अप्रत्याख्यान क्रिया होती है।
___टीका-मूलगुणाः प्राणातिपातविरमणास्तेषु प्रकृतमधिकारः प्राणातिपातादेः प्रत्याख्यानं कर्तव्यमिति यावत् ।
मूलगुण - प्राणातिपात आदि ( अठारह पापों ) का विरमण । एसका यह प्रकृत अधिकार है । अतः प्राणातिपात आदि का प्रत्याख्यान करना चाहिए ।
टीका-इह प्रत्याख्यानक्रियाऽध्ययनेनार्थाधिकारो यदि मूलगुणप्रत्याख्यानं न क्रियते ततोऽपायं दर्शयितुमाह ।
यहाँ प्रत्याख्यान क्रिया अध्ययन से अर्थाधिकार है । यदि मूलगुणों का प्रत्याख्यान नहीं किया जाता है तो उससे होने वाले अपाय-दोष को दिखाने के लिए कहा गया है ।।
टीका-प्रत्याख्यानाभावेऽनियतत्वाद्यत्किंचन कारितया तत्प्रत्ययिका तत्निमित्ताभावादुलद्यते अप्रत्याख्यानक्रिया सावद्यानुष्ठानक्रिया तत्प्रत्ययिकश्च कर्मबन्धस्तन्निमित्तश्च संसार इत्यतः प्रत्याख्यानक्रिया मुमुक्षुणा विधेयेति ।
प्रत्याख्यान के अभाव में अनियतता-अनियन्त्रण होने के कारण जीव जो कुछ भी कर सकता है उसके निमित्त से अप्रत्याख्यान-क्रिया-सावद्यानुष्ठान क्रिया उत्पन्न होती है उससे कर्मबन्ध होता है और उससे ही संसार होता है। इसलिए मुमुक्षु को प्रत्याख्यान क्रिया करनी चाहिए।
६२.६.३.६ वामलोकवादी के मत का प्रतिपादन--
अवरे णस्थिवाइणो वामलोयवाई भणंती णत्थि जीवो ण जाइ इह परे वा लोए ण य किंचि वि फुसइ पुण्णरावे णस्थि फलं सुकयदुक्याणं पंच महाभूइयं सरीरं भासंति हे वायजोगजुत्तं ! पंच य खंधे भणंति केइ, मणं य मणजीविया भणति, वाउजीयो त्ति एवमाहंसु, सरीरं साइयं सणिधणं इह भवे एगे भवे तस्स विप्पणसम्मि सव्वणासोत्ति, एवं जंपति मुसावाई, तम्हा दाणवयपोसहाणं तवसंजमबंभचेरकल्लाणमाइयाणं णत्थि फलं ण वि य पाणवहे अलिवयणं ण चेव चोरिककरण
"Aho Shrutgyanam"