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क्रिया-कोश
३४५ (१३) अल्पास्रववाले, अल्पक्रियावाले, महावेदनावाले, महानिर्जरा, (१४) अल्पास्रववाले, अल्पक्रियावाले, महावेदनावाले, अल्पनिर्जरा, (१५) अल्पाववाले, अल्पक्रियावाले, अल्पवेदनावाले, महानिर्जरा, (१६) अल्पास्रबवाले, अल्पक्रियावाले, अल्पवेदनावाले, अल्पनिर्जरावाले । ये सोलह विकल्प होते है ।
आस्रव-क्रिया-वेदना और निर्जरा के–महा तथा अल्प की अपेक्षा निम्नलिखित सोलह विकल्प होते है :--
नारकी के जीवों में दूसरा विकल्प होता है । असुरकुमार से स्तनितकुमार तक चतुर्थ विकल्प होता है।
पृथ्वीकाय-अपकाय-अग्निकाय-वायुकाय-वनस्पतिकाय-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियपंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीव--मनुष्य में सोलह ही विकल्प होते हैं ।
वाणभ्यंतर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों में चतुर्थ विकल्प होता है ।
विश्लेषण :-१-महात्रव-प्रचुर कर्म बंधन से होता है, २-महा क्रिया---कायिकी आदि क्रियाओं की बहुलता से होती है, ३-महावेदना-वेदना की तीव्रता से होती है, ४-महानिर्जरा-कर्म-क्षपण की बहुलता से होती है । इसके विपरीत अल्पासव-अल्प क्रियाअल्पवेदना-अल्पनिर्जरा जानना।
नारकी में आस्त्रव-क्रिया-वेदना महान होती है, कर्मनिर्जरा अल्प होती है । देवताओं में आस्रव क्रिया महान होती है ; देवताओं में आस्रव-क्रिया अविरत भाव की प्रबलता होने से महास्रव · महा क्रिया होती है ; वेदना अल्प होती है क्योंकि प्रायः सातावेदनीय का उदय रहता है तथा निर्जरा भी अल्प होती है क्योंकि प्रायः अशुभपरिणाम होते हैं ।
६६.१५ दो क्रियावाद
___समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्थंसि सत्त पवयणनिण्हगा पन्नत्ता, तंजहा-बहुरया १, जीवपएसिया २, अवत्तिता ३, सामुच्छेइया ४, दो किरिया ५, तेरासिया ६, अबद्धिया ७, एएसि णं सत्तण्हं पवयणनिणण्हगाणं सत्त धम्मायरिया होत्था, तंजहा-जमाली १, तीसगुत्ते २, आसाढे ३, आसमित्त ४, गंगे ५, छलुए ६, गोट्ठामाहिले ७।
-ठाण० स्था ७ । सू ५८७ । पृ० २८५ श्रमण भगवान महावीर के तीर्थ में उनके प्रवचन का उत्थापन करने वाले सात निव हुए, उनमें एक समय में दो क्रिया का होना मानने वाले दो क्रियावादी गंगदत्त आचार्य हुए।
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