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क्रिया-कोश
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इस लोक में श्रद्धालु गृहस्थ-गृहिणी आदि ऐसे होते हैं जो साधु के आचार-गोचर को भली-भाँति नहीं समझते हैं तथा श्रद्धा करके, प्रतीति करके, रुचि करके अनेक श्रमणब्राह्मण आदि के रहने के लिए अलग-अलग भवन, धर्मशाला आदि का निर्माण कराते हैं । यदि साधु को यह मालूम हो जाय कि ये भवनादि श्रमण-ब्राह्मण आदि के रहने के लिए बनाये गये हैं । ऐसा जानकर भी साधु-श्रमण उस प्रदत्त उद्दिष्ट भवन-वासस्थान आदि में जाकर रहे तो उस साधु को महावय॑क्रिया लगती है ।
'७ सावज्ज-किरिया :---
इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सङ्घा भवंति, संजहा-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ, तं सहहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुदिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराईचेतिआई भवंति, तंजहाआएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा।
जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहिं पाहुडेहिं वति, आयमाउसो ! सावज्ज-किरिया वि भवइ ।
-आया० श्रु २ ! अ २ ! उ २ । सू ४० । पृ० ५५ इस लोक में कई श्रद्धालु गृहस्थ-गृहिणी आदि ऐसे होते हैं जो साधु के आचारगोचर को भली-भाँति नहीं समझते हैं तथा श्रद्धा करके, प्रतीति करके, रुचि करके अनेक श्रमण-ब्राह्मण आदि के रहने के (सामुदायिक) उद्देश्य से भवन आदि का निर्माण कराते है। इसको जानते हुए भी यदि कोई साधु उस प्रदत्त घर में जाकर रहे तो उसको सावधक्रिया
लगती है।
•८ महासावज्ज-किरिया :
इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संगझ्या सड़ा भवंति । तंजहा-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयारगोयरेको सुणिसंते भवइ, तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समहिस्स तत्थ तत्थ अगारीहि अगाराई चेतिताई भवंति, तंजहा--आएसणाणि वा जाव भवगिहाणि वा। महया पुढविकाय समारंभेणं जाव (महया आउकायसमारंभेणं, महया तेउकाय समारंभेणं, महया वाउकाय-समारंभेणं, महया वाणस्सइकाय-समारंभेणं) महया तसकाय-समारंभेणं, महया संरंभेणं, महया
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