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________________ ३१२ क्रिया-कोश '२ उपस्थान क्रिया : से आगंतारेसु वा जाव ( आरामागारेसु वा, गाहावकुलेसु वा, ) परियावसहेसु वा, जे भयंतारो उडुद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिगावित्ता तं दुगुणा दुगणेण (दुगुणा तिगुणेण ) अपरिहरित्ता तत्थेव भुजो (भुज्जो) संवसंति, अयमाउसो ! उवट्ठाण-किरिया वि भवइ। --आया० अ २१ अ २ । उ२ । सू३५। पृ० ५४ पथिक-विश्राम-गृह, आरामगृह, गृहपति के घर और मठ-आश्रमादि में जो साधुसाध्वी ऋतुबद्ध शीतोष्ण काल में मासकल्प तथा वर्षाकाल में चार मासकल्प व्यतीत करने के बाद उसी स्थान में दो-तीन मास का व्यवधान किये बिना शीतोष्णकाल में तथा दोतीन चतुर्मास का व्यवधान किये बिना वर्षाकाल में बिना कारण आकर रहे तो उनको उपस्थान-क्रिया दोष लगता है। ३ अभिक्रान्त क्रिया :-- इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगड्या, सड्ढा भवंति, तंजहा - गाहावई वा, जाव ( गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइधूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा ) कम्मकरीओ वा । तेसिं च णं आयार गोयरे णो सुणिसंते भवइ, तं सहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए सुमुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहिं अगाराई, चेतिताई भवंति, तंजहा-आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणियसालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहाकम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्मंताणि वा, वक-कम्मंताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मंताणि वा, सेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा, भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि (जाव ) भवणगिहाणि वा तेहिं ओवयमाणेहिं ओवयंति । अयमाउसो ! अभिकत-किरिया वि भवइ । --आया० श्रु २ । अ २ । प्र ३६ । पृ० ५४ इस लोक में पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सभी दिशाओं में कई एक श्रद्धालु गाथापति-गृहस्थ, गाथापत्नी-गृहिणी, गाथापति के पुत्र, गाथापति की पुत्री, गाथापति को "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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