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________________ क्रिया - कौश ३०६ चरम अक्रियावादी जीव का वक्तव्य परम्परोपपन्नक अक्रियावादी जीव की तरह कहना । अचरम अक्रियावादी जीव का वक्तव्यं औधिक अक्रियावादी जीव की तरह कहना । ६३ क्रिया और प्रतिक्रमण ६३१ कायिकी क्रियापंचक और प्रतिक्रमण निष्फल हों । पडिक्कमामि पंचहि किरियाहि — काइयाए, अहिगरणियाए, पाउसियाए, परितावणियाए, पाणाश्वायकिरियाए । -- आव ० अ ४ । सू ६ | पृ० ११६८ मैं कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी क्रियाओं का प्रतिक्रमण करता हूँ । मेरे क्रियाजनित दुष्कृत विवेचन यदि कायिकी क्रियापंचक की सदनुष्ठान प्रशस्त क्रिया में वर्तना न की हो ) तो का अतिचार लगा हो तो उसका मैं प्रतिक्रमण वर्तना की हो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर उसका सेवन नहीं करूँगा । *६३२ तेरह क्रियास्थान और प्रतिक्रमण : अप्रशस्त क्रिया में वर्तना की हो ( तथा उस कारण से संयम में यदि किसी प्रकार करता हूँ । कायिकी क्रियापंचक में यदि पडिक्कमामि Xxx | तेरसहि किरियाठाणेहिं । -- आव० अ ४ | सू ६ । पृ० ११६८ मैं तेरह क्रियास्थानों का प्रतिक्रमण करता हूँ--उनसे निवृत्त होता हूँ । मेरे क्रियाजनित दुष्कृत निष्फल हों । विवेचन – यदि बारह अप्रशस्त क्रियास्थानों में वर्तना की हो तथा ऐर्यापथिकी क्रिया में वर्तना न की हो तो उस कारण से संयम में यदि किसी प्रकार का अतिचार लगा हो तो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । बारह क्रियास्थानों में यदि वर्तना की हो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर उनका सेवन नहीं करूंगा । - * १४ क्रिया और भिक्षु :१४१ औधिक विवेचन : (क) वसु इंदियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निश्च से न अच्छर मंडले | 3 - उत्त० अ ३१ । गा ७ । ० १०३८ " Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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