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क्रिया - कौश
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चरम अक्रियावादी जीव का वक्तव्य परम्परोपपन्नक अक्रियावादी जीव की तरह
कहना ।
अचरम अक्रियावादी जीव का वक्तव्यं औधिक अक्रियावादी जीव की तरह कहना ।
६३ क्रिया और प्रतिक्रमण
६३१ कायिकी क्रियापंचक और प्रतिक्रमण
निष्फल हों ।
पडिक्कमामि पंचहि किरियाहि — काइयाए, अहिगरणियाए, पाउसियाए, परितावणियाए, पाणाश्वायकिरियाए । -- आव ० अ ४ । सू ६ | पृ० ११६८ मैं कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी क्रियाओं का प्रतिक्रमण करता हूँ । मेरे क्रियाजनित दुष्कृत विवेचन यदि कायिकी क्रियापंचक की सदनुष्ठान प्रशस्त क्रिया में वर्तना न की हो ) तो का अतिचार लगा हो तो उसका मैं प्रतिक्रमण वर्तना की हो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर उसका सेवन नहीं करूँगा । *६३२ तेरह क्रियास्थान और प्रतिक्रमण :
अप्रशस्त क्रिया में वर्तना की हो ( तथा उस कारण से संयम में यदि किसी प्रकार करता हूँ । कायिकी क्रियापंचक में यदि
पडिक्कमामि Xxx | तेरसहि किरियाठाणेहिं ।
-- आव० अ ४ | सू ६ । पृ० ११६८ मैं तेरह क्रियास्थानों का प्रतिक्रमण करता हूँ--उनसे निवृत्त होता हूँ । मेरे क्रियाजनित दुष्कृत निष्फल हों ।
विवेचन – यदि बारह अप्रशस्त क्रियास्थानों में वर्तना की हो तथा ऐर्यापथिकी क्रिया में वर्तना न की हो तो उस कारण से संयम में यदि किसी प्रकार का अतिचार लगा हो तो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । बारह क्रियास्थानों में यदि वर्तना की हो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर उनका सेवन नहीं करूंगा ।
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* १४ क्रिया और भिक्षु :१४१ औधिक विवेचन :
(क) वसु इंदियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निश्च से न अच्छर मंडले |
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- उत्त० अ ३१ । गा ७ । ० १०३८
" Aho Shrutgyanam"