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________________ ३०८ क्रिया-कोश जैसी वक्तव्यता औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में (क्रमांक ६२.६४) कही गई है वैसी ही वक्तव्यता अक्रियावादी अनन्तरोपपन्नक जीव के सम्बन्ध में कहनी चाहिए । इतनी विशेषता है कि अक्रियावादी अनन्तरोपपन्नक जीव में सलेशी यावत् अनाकारोपयोग तक जो जो विशेषण पाये जायँ उन-उन विशेषणों से विवेचन करना चाहिए । ६२.६.१० परंपरोपपन्नक अक्रियावादी और जीवदंडक :-~६२६११ परंपरोपपन्नक अक्रियावादी और आयुष्य का बंधन :' २६.१२ " . भव-अभवसिद्धिकता :परंपरोववन्नगा xxxx तियदंडगसंगहिओ। ( पूरे पाठ के लिए देखिये क्रमांक ६२.६४ ) परम्परोपपन्नक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में वैसी ही वक्तव्यता जाननी चाहिए जैसी औधिक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में ( देखो क्रमांक ६.२ ६.४ ) वक्तव्यता कही ६.२ ६.१३ अनंतरावगाढ़-अनंतराहारक-अनंतरपर्याप्त अक्रियावादी और जीवदंडक ६.२ ६.१४ , " , और आयुष्य का बंधन :-- ६२ ६.१५ ,, और भव-अभवसिद्धिकता :६२.६.१६ परंपरावगाढ-परंपराहारक परंपरपर्याप्त अक्रियावादी और जीवदंडकः६२६ १७ , , , और आयुष्य का बंधन :-- '६२६१८ ,, , और भव-अभवसिद्धिकता६२.६.१६ चरम-अचरम अक्रियावादी और जीवदंडक :६२६२० , , और आयुष्य का बंधन :'६२६.२१ , , और भव-अभवसिद्धिकता : एवं एएणं कमेणं xxxx सेसं तहेव । ( पूरे पाठ के लिए देखिये क्रमांक ६२.४.३,१०,११,१२) अनन्तरावगाढ़, अनन्तराहारक, अनन्तरपर्याप्त अक्रियावादी जीव का गमक अनन्तरोपपन्नक अक्रियावादी जीव की तरह कहना अर्थात् अक्रियावादित्व, आयुष्य का बन्धन तथा भव-अभवसिद्धिकता के सम्बन्ध में वैसी ही वक्तव्यता कहनी चाहिए जैसी अनन्तरोपपन्नक अक्रियावादी जीव के सम्बन्ध में कही गयी है। (देखो क्रमांक ६.२६७,८,8) परम्परावगाढ़, परम्पराहारक, परम्परपर्याप्त अक्रियावादी जीव का गमक परम्परोपपन्नक अक्रियावादी जीव की तरह कहना चाहिए। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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