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________________ जीवों में पाया जाता है। सभी मिथ्याष्टि जीवों के आरम्भिकी पंचक को पाँचों क्रियाएँ होती हैं तथा समदृष्टि जीवों के आरम्भिकी पंचक की प्रथम की चार कियाएँ होती हैं। गुणस्थान की अपेक्षा आरम्भिकी क्रिया प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक के जीवों के होती है, पारिग्रहिकी क्रिया संयता यत गुण स्थान तक के जीवों को होती है, मायाप्रत्यायिकी क्रिया सराग अप्रमत्तसंयत दश गुणस्थान तक के जोंवों को होती है, अप्रत्याख्यान किया अविरत गुणस्थान तक के जीवों को होती है, मिथ्यादर्शन-प्रत्यायिकी क्रिया मिथ्याष्टि जीवों को होती है । वीतराग संयत अर्थात् ग्याहरवें तथा तदुपरि गुणस्थान के जीवों को आरम्भिको क्रियापंचक की कोई क्रिया नहीं होती है इस अपेक्षा से वे अक्रिय होते हैं । आरम्भिको क्रिया--कोई भी आरम्भ के करने से होती है। यह क्रिया छ? गुणस्थान के प्रमत्तसंयत के भी होती है लेकिन जब प्रमत्तसंयत के शुभयोग होता है तब वह अनारंभी होता है, अतः शुभयोग प्रवर्तते हुए अनारम्भी प्रमत्तसंयत के आरम्भ का अभाव होने से आरम्भिकी क्रिया नहीं होती है । मूल-xxxi तत्थ णं जे ते पमत्तसंजया ते सुहं जोगं पडुच्च णो आयारंभा, णो परारंभा, णो तदुभयारंभा अणारंभा । -भग० श १ ! उ १ । प्र४८। पृ० ३८ आरंभिकी क्रियापंचक की नियमा-भजना औधिक जीव की अपेक्षा इस प्रकार है : जिस औधिक जीव के आरंभिकी क्रिया होती है उसको पारिग्रहिकी क्रिया कदाचित होती है, कदाचित नहीं होती है लेकिन जिसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है उसके आरंभिकी क्रिया नियम से होती है। जिस जीव के आरंभिकी क्रिया होती है उसके मायाप्रत्ययिकी क्रिया नियम से होती है तथा जिसके मायाप्रत्ययिकी क्रिया होती है उसके आरंभिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित नहीं होती है ! जिस जीव के आरंभिकी क्रिया होती है उसके अप्रत्याख्यान क्रिया कदाचित होती है, कदाचित नहीं होती है तथा जिस जीव के अप्रत्याख्यान क्रिया होती है उसके आरंभिकी क्रिया नियम से होती है। जिसके आरंभिकी क्रिया होती है उसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती है तथा जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया होती है उसके आरम्भिको क्रिया नियम से होती है। जिस जीव के पारिग्रहिकी क्रिया होती है उसके मायाप्रत्ययिकी क्रिया नियम से होती है तथा जिसके माया प्रत्ययिकी क्रिया होती है उसके पारिग्रहिकी क्रिया कदाचित होती है, कदाचित नहीं होती है । जिसके पारिग्रहिकी क्रिया होती है उसके अप्रत्याख्यान क्रिया [ 33 ] "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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