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________________ २३२ क्रिया-कोश दूसरा तथा तीसरा मनष्यभव देवभव के अन्तराल वाला जानना अर्थात दूसरे मनुष्यभव के पहले भी देवभव होता है तथा तीसरे मनुष्यभव के पहले भी देवभव होता है क्योंकि चारित्रवाला व्यक्ति अनन्तर भव में देवलोक में ही जाते हैं वहाँ सिद्धि नहीं हो सकती। “७३.१३.१२ एकान्त पण्डित : अन्तक्रिया गोयमा! एगंतपंडियस्स णं मणसस्स केवलं एवं दो गईओ पण्णायंति, तंजहा–अतकिरिया चेव, कप्पोववत्तिया चेव । -भग० श१ । उ प्र २६१ । पृ० ४०८ एकान्त पण्डित मनुष्य - साधु की दो गतियाँ कहीं गई हैं, यथा-अन्तक्रिया और कल्पोपपत्तिका। •७३.१३.१३ भवसिद्धिक जीव और कितने भव में अन्तकिया : संतेगइया भवसिद्धिया जे जीवा, ते एगेणं भवग्गहणणं सिझिस्संति बुझिसंति मुञ्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सचदुक्खाणमंतं करिस्सति । --सम० सम १ 1 सू१ । पृ० ३१७ अत्थेगइया भवसिद्धिया जीवा जे दोहिं भवग्गहणेहि सिन्झिस्संति बुझिसंति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । --सम० सम २ । पृ० ३१७-१८ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तिहिं भवग्गहणेहिं सिम्झिरसंति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम० सम ३ । पृ० ३१८ अत्थेगइया भवसिद्धिया जीवा जे चउहिं भवरगहणेहि सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति । -सम० सम ४] पृ० ३१६ संतेगड्या भवसिद्धिया जीवा जे पंचहिं भवग्गहणेहिं सिझिस्संति जाव अंतं करिस्संति। –सम० सम ५ । पृ ३२० संतेगझ्या भवसिद्धिया जीवा जे छहिं भवग्गहणेहिं सिन्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम० सम ६ । पृ० ३२० . संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जेणं सत्तहिं भवग्गहणेहि सिन्मिासंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ! –सम सम ७ ! पृ० ३२१ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्टहिं भवम्गहणेहिं सिज्झिरसंति बुझिस्संति आव अंतं करिस्संति। --सम० सम ८। पृ० ३२२ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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