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क्रिया-कोश __ क्या उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, ज्ञात तथा कौरव कुल्ल के क्षत्रिय इस निर्ग्रन्थ धर्म में प्रवेश करते हैं तथा प्रवेश करके आठ प्रकार के रजोमल को धूनकर तत्पश्चात् सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ।
हाँ, उन उग्र, भोग आदि कुल के क्षत्रिय में से कितने ही सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं तथा कितने ही कोई एक देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होते हैं ।
•७३ १३२ श्रमणोपासक और अन्तक्रिया :
समणोवासए णं भंते ! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम साइमेणं पडिलाभेमाणे किं लगभइ ? गोयमा ! समणोवासए णं तहारूवं समणं वा जाव पडिलाभेमाणे तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा समाहिं उपाएइ, समाहिकारएणं तमेव समाहिं पडिलभइ।।
समणोवासए | भंते! तहारूवं समणं वा जाव पडिलाभेमाणे किं चयइ ? गोयमा ! जीवियं चयइ, दुच्चयं चयइ, दुक्करं करेइ, दुल्लह लहइ, बोहिं बुज्झइ, तओ पन्छा सिझड़, जाव अंतं करेइ ।
-भग० श ७ । १ । प्र०८, पृ० ५०६ तथारूप श्रमण साधु को प्राशुक-एषणीय अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार देंता हुआ श्रमणोपासक-उन श्रमण साधु को समाधि उत्पन्न करता है तो स्वयमेव भी समाधि को प्राप्त होता है तथा जीवितव्य अर्थात् जीवन-निर्वाह के कारणभूत वस्तुओं का त्याग करता है तथा कठिनता से त्यक्त होने वाली वस्तुओं का त्याग करता है, दुर्लभ वस्तु को प्राप्त करता है-बोधि ( सम्यक्त्व ) को प्राप्त करता है । तत्पश्चात् सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होकर यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ।
•७३.१३'३ अणगार और अन्तक्रिया :------
(क) ते (से जहानामए अणगारा भगवंतो) णं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइ सामन्नपरियागं पाउणंति पाउणंति बहुबहु आबाहंसि उत्पन्नंसि वा अणुप्यन्नंसि वा बहूई भत्ताई पञ्चक्खंति, पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताइ अणसणाए छेदेति, अणसणाए छेदित्ता जस्सट्ठाए कीरइ (थेरकप्पभावे जिणकप्पभावे ) नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणभावे अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेजा फलगसेजा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे पर-घर-पवेसे लद्धावलद्ध माणावमाणणाओ हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गाम-कंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तम8 आराहेंति, तम8 आराहित्ता चरमेहिं उस्सास
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