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से पकड़ते हैं और उसका उचित विश्लेषण करते हैं । उनकी एक पुस्तक 'जैन पदार्थ विज्ञानं में पुद्गल' प्रकाशित हुई है और वह काफी प्रशंसा प्राप्त कर चुकी है। इधर कुछ समय पहले लेश्याकोश' के नाम से एक दूसरी कृति भी उनकी बहुत शानदार निकली है । यह प्रस्तुत "क्रियाकोश' भी उसी कोटि की श्रेष्ठ कृति है। इसमें यत्र-तत्र उनकी बहुमुखी प्रतिभा के दर्शन होते है। आगम साहित्य में दूर-दूर तक फैले हुए क्रिया सम्बन्धी वर्णनों को बड़े सुन्दर ढङ्ग से एकत्र कर क्रिया-साहित्य का एक सर्वाङ्गीण चित्र ही उपस्थित कर दिया है । मैं श्री बॉठियाजी के इस संकलन का हृदय से स्वागत करता हूँ और विद्वानों से अनुरोध करता हूँ कि वे उक्त कोश का यथावकाश गम्भीर अध्ययन करें और सर्वसाधारण जिज्ञासुओं के लिये कर्मवाद, क्रियावाद, साथ ही कर्म-मुक्तिवाद आदि का भव्य विश्लेषण कर भारतीय तत्त्वचिन्तन को श्रीवृद्धि करें ।
जैन भवन मोती कटरा, आगरा २०-१०-१६६६
—उपाध्याय अमर मुनि
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"Aho Shrutgyanam"