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क्रिया-कोश
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'७३-१२५ एजनादि से सक्रिय जीव अन्तक्रिया नहीं करता है जीवे णं भंते! सया समियं एयर, वेयर, चलइ, फंदइ, घट्टइ, खुभाइ, उदीरइ, तं तं भावं परिणम ? हंता, मंडियपुत्ता ! जीवे णं सया समियं एयइभावं परिणमत्र !
-जाब - तं तं
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जावं च णं भंते! से जीवे सया समियं- जाब - परिणम, तावं च णं तस्स जीवस अते अतकिरिया भवइ ? णो ण सम से केrण एवं बुवइ -- जायं च अंतकिरिया ण भवन ?
णं से जीवे सया समियंजाब - अते
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मंडियपुत्ता ! जावं च णं से जीवे से जीवे आरंभ सारंभ, समारंभइ आरंभमाणे, सारंभमाणे समारंभमाणे माणे बहूणं पाणाणं, भूयाणं, जीवाणं, जूरावणयाए, तिप्पावणयाए, पिट्टावणयाए, मंडियपुत्ता ! एवं बुच्चइ-जावं च णं से जीवे तावं च णं तस्स जीवस्स अते अंतकिरिया ण भवइ ।
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सया समियं - जाय- परिणमइ, तावं च णं आरंभे वट्टइ, सारंभे वट्टर, समारंभे वट्टर ; आरंभे वट्टमाणे, सारंभे वट्टमाणे, समारंभ सत्ताणं दुक्खवणयाए, सोयावणयाए, परियावणयाए वट्टइ, से तेजट्टेणं सया समियं एयइ - जाव - परिणमत्र,
-भग० श ३ । उ ३ । प्र १०-१२ | पृ० ४५६-५७ जो जीव सदा समपूर्वक कम्पन करता है, विविध रूप से कम्पन करता है, चलता है, स्पंदन करता है, थोड़ा चलता है, क्षुब्ध होता है; प्रबलतापूर्वक प्रेरण करता है तथा उन-उन भावों में परिणमन करता है वह जीव अन्तक्रिया नहीं करता है क्योंकि जो जीव एजनादि क्रिया करता है, उन उन भावों में परिणमन करता है वह जीव आरम्भ सारम्भ समारम्भ करता है; आरम्भ-सारम्भ समारम्भ में वर्त्तता है । आरम्भमाण, सारम्भमाण, समारम्भमाण है; आरम्भ सारंभ समारंभ में वर्तमान है वह जीव बहुत प्राण-भूत-जीव सत्त्वों को दुःख-शोक यावत् परिताप - त्रास पहुँचाता है अतः उस ( सक्रिय ) जीव की अन्त में अन्तक्रिया नहीं होती है !
'७३·१२६ केवली समुद्घात करता हुआ जीव अन्तक्रिया नहीं करता है
से णं भंते! तहा समुग्वायगए सिज्झइ, बुज्झइ, मुचइ, परिनिव्वायर, सव्वदुक्खाणं अंत करेइ ? गोयमा ! नो इट्टे समट्ठे !
से णं तओ पडिनियत्तर [तओ] पडिनियत्तत्ता [इहमागच्छर आगच्छत्ता ] तओ पच्छा मणजोगं पि जुजइ, बइजोगं पि जुंजइ, कायजोगं पि जुजइ । मणजोगं अमाणे किं सचमणजोगं जुं जइ, मोसमणजोगं जुंज, सच्चामोसमणजोगं जुंज,
"Aho Shrutgyanam"