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क्रिया - कोश
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७३९ कौन जीव अन्तक्रिया करते हैं-
७३६१ दया-धर्म की प्ररूपणा करने वाले जीव :
तत्थ णं जे ते समणा माहणा एवमाइक्वंति जाव परूवेंति - सव्वे पाणा (सव्वे भूया सव्वे जीवा ) सब्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिधेयव्वा ण उद्दवेयव्वा । ते णो आगंतुच्छेयाए ते णो आगंतुभेयाए जाव जाइ-जरा-मरण- जोणिजम्मण - संसार - पुणम्भव- गन्भवास-भवपर्वच - कलंकलीभागिणो भविस्संति । [ ते णो बहूणं दंडणाणं जाव णो बहूणं मुंडणाणं जाव बहूणं दुक्ख दोम्मणरसाणं णो भागिणो भविस्संति । ] अणाई च णं अणवयगं दीहमद्ध चाउरंत संसार- कंतारभुज्जो भुज्जो णो अणुपरियट्टिस्संति, ते सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करिहसति ।
- सूय श्रु २ । अ २ । सू २६ / पृ० १५६
वे श्रमण-ब्राह्मण जो ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण-भूत-जीवसवों का हनन नहीं करना चाहिए, दण्ड नहीं देना चाहिए, दासवृत्ति नहीं करानी चाहिए, यावत् उद्योग नहीं पहुँचाना चाहिए। भविष्यत् काल में वे सब जीव छेदनभेदन को प्राप्त नहीं होंगे यावत् जाति-जरा-मरण-योनि-जन्म-संसार में बार-बार जन्म लेकर गर्भ में आकर भव-प्रपंच में महान पोड़ा नहीं पायेंगे ! वे बहुत कष्ट मण्डन- तर्जन यावत दौर्मनस्य के भागी नहीं होंगे ! वे इस अनादि अनन्त चातुर्गतिक संसार रूपी अटवी में दीर्घकाल पर्यन्त बार-बार परिभ्रमण नहीं करेंगे ।
ऐसा दयाधर्म प्रतिपादित करने वाले श्रमण-ब्राह्मण सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे अर्थात् अन्तक्रिया करेंगे ।
-७३६०२ निर्ग्रन्थ प्रवचन में स्थित जीव अन्तक्रिया करता है :
(क) इणमेव गिंथे पावयणे सच्चे, अणुत्तरे, केवलए, संसुद्ध, पडिपुणे, याउ, सल्लत्तणे, सिद्धिमग्गे, मुत्तिमग्गे, णिव्वाणमग्गे, णिज्जाणमगे, अवितहमविसंधि, सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, इहट्टिया जीवा सिज्यंति, बुज्झति, मुख ंति, परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।
- ओवल । सू० ३४ । पृ० २२
(ख) इणमेव णिग्गंथं पावयणं सचं अणुत्तरं, केवलियं, पडिपुण्णं, संसुद्ध, नेयाज्यं, सल्लकत्तणं, सिद्धिमग्गं, मुत्तिमग्गं, निज्जाणमगं, निव्वाणमग्गं, अवितहमविसं(दिद्ध' )धि, सव्वदुक्खपहीणममां । एत्थं ठिया जीवा सिज्यंति, बुज्भंति, मुच्वंति, परिनिव्वाति, सव्वदुक्खाणमंत करेंति । - आव० अ ४ सू ७ पृ० ११६६ सूय ० २ । अ ७ । सू ११ । पृ० १७७
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