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क्रिया-कोश
ओहियाणं गमओ, नवरं पम्हलेस्ससुक्कलेस्साओ पंचिदियतिरिक्खजोणियमणूसमणियाणं चैव न सेसाणं ति ।
- पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११४५ से ११५५ / पृ० ४३७ सलेशी जीव भी समक्रिया वाले नहीं होते हैं । सलेशी जीवदण्डक को औधिक ( निर्विशेषण) जीवदण्डक की तरह जानना ।
शुक्ललेशी जीवदण्डक भी औधिक जीव
दण्डक की तरह जानना केवल जिस दण्डक में शुक्ललेश्या होती है उसको कहना |
कृष्णलेशी - नीललेशी जीव भी समक्रिया वाले नहीं होते हैं । समक्रिया की अपेक्षा कृष्णलेशी - नीललेशी जीवदण्डकों का एकसा गमक औधिक जीवदण्डक के समान कहना केवल मनुष्यों में सराग वीतराग, प्रमत्त अप्रमत्त भेद नहीं कहना क्योंकि कृष्णलेश्या वाले, नोललेश्पा वाले मनुष्य वीतराग संयत नहीं होते हैं, सरागसंयत ही होते हैं तथा अप्रमत्त संयत भी नहीं होते हैं, प्रमत्तसंयत ही होते हैं । टीकाकार का कथन है--इन लेश्याओं में संयतता का ही अभाव है इसलिये उपर्युक्त सराग वीतराग, प्रमत्त- अप्रमत्त भेद नहीं
कहना ।
गमक कृष्णलेशी, नीललेशी
समक्रिया की अपेक्षा, कापोतलेशी जीवदण्डक का जीवदण्डक की तरह कहना !
तेजोलेशी - पद्मलेशी जीव भी समक्रिया वाले नहीं होते है । तेजोलेशी - पद्मलेशी जीवदण्डकों को भी औधिक ( निर्विशेषण ) जीवदण्डक की तरह कहना केवल मनुष्यों में सराग- वीतराग भेद नहीं कहना क्योंकि तेजोलेशी - पद्मलेशी मनुष्य वीतरागसंयत नहीं होते हैं, सराग ( प्रमत्त- अप्रमत्त ) संयंत ही होते हैं तथा जिस दण्डक में तेजोलेश्या - पद्मलेश्या होती है वही दण्डक कहना !
उदाहरणार्थ
* १ सलेशी नारकी कोई चार क्रियावाला, कोई पाँच क्रियावाला होता है ।
२ सलेशी भवनवासी देव -- वही ।
- ३ सलेशी पृथ्वी कायिक पाँच कियावाले होते हैं ।
४ सलेशी अपकायिक से चतुरिन्द्रिय जीव पाँच क्रिया वाले होते हैं ।
*५ सलेशी पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जीव कोई तीन, कोई चार, कोई पाँच क्रिया वाले होते हैं ।
'६ सलेशी मनुष्य कोई अक्रिय, कोई एक, कोई दो, कोई तीन, कोई चार, कोई पाँच क्रियावाले होते हैं ।
-७ सलेशी वाणव्यंतर ज्योतिषी - वैमानिक देव जीव कोई चार, कोई पाँच क्रिया वाले होते हैं ।
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