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क्रिया - कोश
मिथ्यात्व आदि से उपहत की अमोक्षसाधक अनुष्ठानरूप दुष्टक्रिया अक्रिया है । इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि का विनय अविनय किया है।
मिथ्यादृष्टि का ज्ञान अज्ञानक्रिया है ।
४१ अक्रिया ( दुष्प्रयुक्तक्रिया )
'४११ परिभाषा / अर्थ
'अकिरिय' त्ति नहि दुःशब्दार्थो यथा अशीला दुःशीलेत्यर्थः, ततश्चाक्रिया -- दुष्टक्रिया मिध्यात्वाद्युपहतस्यामोक्षसाधकमनुष्ठानम्।
-- ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८७ । टीका यहाँ नकारात्मक 'अ' उपसर्ग दुःशब्द का द्योतक है जैसे अशील को दुःशील कहा जाता है अतः अक्रिया अर्थात् मिथ्यात्व आदि से उपहत व्यक्ति का मोक्षसाधक अनुष्ठान-दुष्टक्रिया अर्थात् अक्रिया ।
४१२ भेद
अकिरिया तिविहा पन्नत्ता,
तंजहा - पओगकिरिया, समुदानकिरिया,
अन्नान किरिया ।
ठाण० स्था३ । ३ । सू १८७ पृ० २१५ अक्रिया के तीन भेद होते हैं, यथा प्रयोगक्रिया, समुदानक्रिया तथा अज्ञानक्रिया । *४१३ भेदों की परिभाषा / अर्थ ४१.३१ प्रयोगक्रिया
तत्र वीर्यान्तरायक्षयोपशमाविर्भूतवीर्येणात्मना प्रयुज्यते - व्यापार्यत इति प्रयोगो - मनोवाक्कायलक्षणस्तस्य क्रिया -- करणं व्यावृतिरिति प्रयोगक्रिया, अथवा प्रयोगः - मनःप्रभृतिभिः क्रियते - बध्यत इति प्रयोगक्रिया कर्मेत्यर्थः, सा च दुष्टत्वादक्रिया । - ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८० । टीका वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से उद्भुत वीर्य से आत्मा जो व्यापार करती प्रयोग है । मन, वचन, काय का प्रयोग प्रयोगक्रिया | दुष्टत्व से प्रवर्त्तित प्रयोग क्रिया प्रयोग अक्रिया ।
वह
४१३२ समुदानक्रिया-
'समुदाणं' ति प्रयोगक्रिययैकरूपतया गृहीतानां कर्मवर्गणानां समितिःसम्यक् प्रकृतिबन्धादिभेदेन देशसर्वोपघातिरूपतया च आदानं - खीकरणं समुदान निपातनात्तदेव क्रिया-कर्मेति समुदानक्रियेति ।
- ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८८७ । टीका
"Aho Shrutgyanam"