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परिवर्तन, परिवर्द्धन व संशोधन सम्बन्धी अथवा अपने अन्य बहुमुल्य सुझाव भेजकर हमें अनुगृहीत करें। हमने इस पुस्तक में यथाशक्ति दोनों प्रकार की क्रियाओं के सभी पाठों का संकलन करने का प्रयास किया है। फिर भी हम यह दावा नहीं कर सकते कि कोई पाठ छूटा नहीं है। हमारी छद्मस्थता से, हमारे प्रमादवश पाठ छूट गये हों तो कोई आश्चर्य नहीं है।
पाठों के संकलन-संपादन में प्रयुक्त ग्रन्थों की सूची में यद्यपि हमने कतिपय ग्रन्थों का ही नाम दिया है तथापि अध्ययन हमने अधिक ग्रन्थों का किया है तथा नियुक्ति-चूर्णीटीका आदि का भी आवश्यकतानुसार अध्ययन किया है । 'लेश्या कोश' की तरह पाठों का मिलान हमने कई मुद्रित प्रतियों से किया है। यद्यपि हमने सन्दर्भ एक ही प्रति का दिया है।
सम्पादन में निम्नलिखित तीन बातों को हमने आधार माना है :१-पाठों का संकलन और मिलान, २---विषय के उपविषयों का वर्गीकरण, तथा ३--हिन्दी अनुवाद
पाठों के मिलान के लिए हमने कई मुद्रित प्रतियों की सहायता ली है। और, यदि कोई महत्त्वपूर्ण पाठान्तर मिला तो उसे शब्द के बाद ही कोष्ठक में दे दिया है।
जहाँ क्रिया सम्बन्धी पाठ स्वतन्त्र रूप में मिल गया है वहाँ हमने उसे उसी रूप में ले लिया है लेकिन जहाँ क्रिया सम्बन्धित पाठ अन्य विषयों के साथ सम्मिश्रित दिये गये है वहाँ हमने निम्नलिखित दो पद्धतियों को अपनाया है :
१-पहली पद्धति में हमने सम्मिश्रित पाठों से क्रिया-सम्बन्धी पाठ अलग निकाल लिया है तथा जिस सन्दर्भ में वह पाठ आया है उस सन्दर्भ को प्रारम्भ में कोष्ठक में देते हुए उसके बाद क्रिया-सम्बन्धी पाठ दे दिया है ( देखें विषयांक ८१.३)।
२-दूसरी पद्धति में हमने सम्मिश्रित विषयों के पाठों में से जो पाठ क्रिया से सम्बन्धित नहीं हैं उनको बाद देते हुए क्रिया सम्बन्धी पाठ ग्रहण किया है तथा बाद दिये हुए अंशों को तीन गुणा (xxx) चिह्नों द्वारा निर्देशित किया है-( देखें विषयांक ८६२)
मूल पाठों में संक्षेपीकरण होने के कारण अर्थ को प्रकट करने के लिए हमने कई स्थलों पर स्वनिर्मित पूरक पाठ कोष्ठक में दिये हैं। (देखें विषयांक ८६१)
वर्गीकृत उपविषयों में हमने मूल पाठों को अलग-अलग विभाजित करके भी दिया है तथा कहीं-कहीं समूचे मूल पाठ को एक वर्गीकृत उपविषय में देकर उस पाठ में निर्दिष्ट
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"Aho Shrutgyanam"