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________________ क्रिया-कोश तलवार, २.क्ति, भाला, तोमर आदि शस्त्रों को मूल से बनाना अथवा पाँच प्रकार के औदारिकादि शरीर को उत्पन्न करना भी गिर्वर्तनाधिरणि की क्रिया कहलाता है, क्योंकि अशुभ प्रवृत्ति वाला शरीर भी संशार वृद्धि का कारण है। अभयदेव सूरि ( ठणांग-भगवई टीकाकार ) के अनुसार खङ्गादि शरत्रों के निर्माण का आदि करना निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया कहलाती है। सामान्यतः कहा जा सकता है कि बने हुए अधिकरणों से ... माधनभूत वस्तुओं से संयोजनाधिकरणिकी क्रिया होती है तथा निर्माण हो रहे अधिकरणों से निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया होती है। २० प्रार्द्व पिकी क्रिया .२० १ परिभाषा / अर्थ (क) प्रवषो-- मत्सरस्तेन निवृत्ता प्राव पिको। . -ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका (ख) प्रपो—मत्सरः तत्र भवा, तेन वा निवृत्ता, स एव वा प्राषिकी ।। --भग श ३ । उ ३ । प्र १ । टीका (ग) असुभं मणं पहारेइ (संपधारेइ), से तं पाओसिया किरिया। पण्ण० पा २२ । सू १५७० । पृ. ४७८ टोका---'पाउसिया' इति प्रवषो-मत्सरः कर्मबन्धहेतुरकुशलो जीवपरिणामविशेष इत्यर्थः तत्र भवा तेन वा निवृत्ता स एव वा प्राषिकी । (घ) क्रोधावेशात्प्राद्वेषिकी क्रिया। -सर्व० अ६ । सू ५। पृ० ३३२ ला १-२ ___-राज० अ६ । सू ५। पृ० ५०६ । ला २२ (ङ) क्रोधावेशात्प्रद्वषो यः सातप्रद्वेषिकी क्रिया । -इलोवा० अ६ । सू५ । गा ८ । पृ० ४४५ प्रद्वेष-मत्सर, कर्मबन्ध का कारण जीव का अशुभ परिणाम विशेष- उसके निमित्त हुई अथवा उसके द्वारा की गई अथवा मत्सररूप क्रिया प्राद्वेषिकी क्रिया कहलाती है। “२००२ भेद - (क) पाओसिया किरिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा--जीवपाउसिया चेव अजीवपाउसिया चेव । ---ठाण ० स्था २ । उ १ । सू. ६० । पृ० १८६ (ख) पाओसिया णं भंते । किरिया काविहा पन्नत्ता ? मंडियपुत्ता ! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा---जीवपाओसिया य अजीवपाओसिया य। -भग० श ३ । उ ३. प्र ४ । पृ० ४५६ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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