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________________ ऋ ललू। अनवर्णा नामी ॥११॥६॥ अवणेरहिताः खरा नामिसंज्ञाः स्युः । इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ । सृदन्ताः समानाः ॥११७॥ अकाराद्या लुकारान्ताः स्वराः समानसंज्ञाः स्युः। अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ सन्ध्यक्षरम् ॥१८॥ अं अः अनुस्वारविसगौ ॥१॥१९॥ अकारावुच्चारणार्थी । अं इति नासिकयोचार्यः। अः इति कण्ठ्यः । ती क्रमादनुस्खारविसर्गसंज्ञौ स्याताम् । कादिर्व्यञ्जनम् ॥१३१०॥ क आदिर्यस्य स कादिः । कादिर्वर्णो हकारपर्यन्तो व्यञ्जनसंज्ञः स्यात् । क ख ग घ ङ च छ ज श अ। ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म । य र ल व श ष स ह । कस्य आदिः कादिरित्यपि विग्रहः। तेन अनुखारो विसर्गश्च गृहीतः । तावपि व्यञ्जनसंज्ञौ स्याताम् । अपञ्चमान्तस्थो धुट् ॥॥॥११॥ वर्गपञ्चमान्तस्थावर्जः कादिवर्णो धुट्संज्ञा स्यात् । क ख ग घ । च छ ज श। ट ठ ड ढ । त थ द ध । प फ ब भ । श ष स ह । पञ्चको वर्गः ॥॥॥१२॥ कादिषु यो यः पश्चवर्णपरिमाणः प्रसिद्धः स वर्गसंज्ञः स्यात् । क ख ग घ खुः । च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म । आद्यद्वितीयशषसा अघोषाः ॥१११११३॥ घर्गाणामाद्यद्वितीया वर्णास्तथा शषसाश्च अघोषसंज्ञाः स्युः । क ख । च छ । ट ठ । त थ । प फ । श ष स। अन्यो घोषवान् ॥११॥१४॥ अघोषेभ्यः परो गादिवर्णों घोषवत्संज्ञः स्यात् । ग घ ङ । ज झन । ड ढ ण । द ध न । ब भ म य र ल व ह।
SR No.009524
Book TitleChandraprabha Hemkaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1928
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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