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पाठ पाँचवाँ
सदाचार
( भक्ष्याभक्ष्य विचार )
सुबोध – क्यों भाई प्रबोध ! कहाँ जा रहे हो ? चलो, आज तो चौराहे पर आलू की चाट खायेंगे। बहुत दिनों से नहीं खाई हैं।
सुबोध
प्रबोध – चौराहे पर और आलू की चाट ! हमें कोई भी चीज़ बाज़ार में नहीं खाना चाहिये और आलू की चाट भी कोइ खाने की चीज़ है ? याद नहीं, कल गुरुजी ने कहा था कि आलू तो अभक्ष्य है ?
- यह अभक्ष्य क्या होता है, मेरी तो समझ में नहीं आता। पाठशाला में पण्डितजी कहते हैं - यह नहीं खाना चाहिये, वह नहीं खाना चाहिए । औषधालय में वैदजी कहते हैं- यह नहीं खाना, वह नहीं खाना । अपने को तो कुछ पसंद नहीं । जो मन में आए सो खाओ और मौज से रहो।
प्रबोध • जो खाने योग्य सो भक्ष्य और जो खाने योग्य नहीं सो अभक्ष्य । यही
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तो कहते हैं कि अपनी आत्मा इतनी पवित्र बनाओ कि उसमें अभक्ष्य
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