________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य
१. जिसने मोह-राग-द्वेष और इन्द्रियों को जीता सो जिन है। २. जिन का भक्त या जिन आज्ञा को माने सो जैन है। ३. संसारी आत्मा को ज्ञान में निमित्त शरीर के चिह्न विशेष ही इन्द्रियाँ
४. जिससे छू जाने पर हल्का-भारी, रूखा-चिकना, ठंडा-गरम और
कड़ा-नरम का ज्ञान हो, वही स्पर्शन इन्द्रिय है। ५. जो खट्टा, मीठा, खारा, चरपरा आदि स्वाद जानने में निमित्त हो, वह
जीभ ही रसना इन्द्रिय कहलाती है। ६. सुगन्ध और दुर्गन्ध जानने में निमित्त रूप नाक ही घ्राण इन्द्रिय है। ७. रंगों के ज्ञान में निमित्त रूप आँख ही चक्षु इन्द्रिय है। ८. जो आवाज के ज्ञान में निमित्त हो, वही कर्ण इन्द्रिय है। ९. ये इन्द्रियाँ मात्र पुद्गल के ज्ञान में ही निमित्त हैं, आत्म-ज्ञान में नहीं। १०. इन्द्रिय सुख की भांति इन्द्रिय ज्ञान भी तुच्छ है। अतीन्द्रिय सुख और
अतीन्द्रिय ज्ञान ही उपादेय हैं।
१९
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com