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माँ
- स्पर्श, रस, गंध और वर्ण तो पुद्गल के गुण है, अतः इनके निमित्त से तो सिर्फ पुद्गल का ही ज्ञान हुआ, आत्मा का ज्ञान तो हुआ नहीं। बेटी – आवाज़ व शब्दों का ज्ञान भी तो हुआ ?
माँ
बेटी
माँ
- वह भी तो पुद्गल की ही पर्याय है ? आत्मा तो अमूर्तिक चेतन पदार्थ है उसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और आवाज़ शब्द हैं ही नहीं । अतः
इन्द्रियाँ उसके जानने में निमित्त नहीं हो सकतीं।
-
- न हो तो न सही । जिसके जानने में निमित्त हैं, वही ठीक।
—
- कैसे ? आत्मा का हित तो आत्मा के जानने में है, अतः इन्द्रिय ज्ञान भी तुच्छ हुआ। जिस प्रकार इन्द्रिय सुख ( भोग) हेय है, उसी प्रकार मात्र पर को जानने वाला इन्द्रिय ज्ञान भी तुच्छ है, तथा प्रतीन्द्रिय आनन्द एवं अतीन्द्रिय ज्ञान ही उपादेय है।
प्रश्न -
९.
जैन किसे कहते हैं ?
२. इन्द्रियाँ किसे कहते हैं ? वे कितनी हैं ? नाम सहित बताइये ।
३. इन्द्रियाँ किस को जानने में निमित्त हैं ?
४. क्या इन्द्रियाँ मात्र ज्ञान में हीं निमित्त हैं ?
५. यदि इन्द्रियाँ ज्ञान में मात्र निमित्त हैं तो जानता कौन हैं ? ६. इन्द्रिय ज्ञान तुच्छ क्यों है ?
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