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साधु
आचार्य, उपाध्याय को छोड़कर अन्य समस्त जो मुनिधर्म के धारक हैं और आत्मस्वभाव को साधते हैं, बाह्य २८ मूलगुणों को अखंडित पालते हैं, समस्त प्रारंभ और अंतरंग बहिरंग परिग्रह से रहित होते हैं, सदा ज्ञान-ध्यान में लवलीन रहते हैं, सांसारिक प्रपंचों से सदा दूर रहते है, उन्हें साधु परमेष्ठी कहते हैं ।
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साधु परमेष्ठी
इस प्रकार पंच परमेष्ठी का स्वरूप वीतराग -विज्ञानमय है, अतः वे पूज्य
प्रश्न -
१.
पंच परमेष्ठी किन्हें कहते हैं ?
२. अरहंत और सिद्ध परमेष्ठीयों का स्वरूप बतलाइये एवं उनका अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
३. सामान्य से साधुओं का स्वरूप बताकर प्राचार्य साधुनों और उपाध्याय साधुओं का स्वरूप बतलाइये ।
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