________________ परिशिष्ट-२ 251 252 योगदृष्टिसंग्रह 20/14 20/19 24/2 18/19 21/22 18/27 सरागस्या सर्वज्ञप्रतिपत्यं सर्वज्ञो मुख्य सर्वत्राद्वेषिणश्चैते सर्व परवशं सर्वार्थतैका सङ्कीर्णा सा सन्तोषादुत्तमं संप्रज्ञातोऽपरचेति संप्रज्ञातोऽवतरति यलेना यथाप्रवृत्त यथाशक्त्य यथौषधीषु यदा रजस्तमो यमः सद्योग यमादि यमाश्च ये योगिनां योगक्रिया योगारम्भ योगे जिनो रत्ननियोगा रात्रेर्दिनाद रूजि सम्यग रेचकः 21/11 | साङ्गमप्येक 23/17 | सानन्दो 23/15 सुखचिन्ता 19/22 सुखस्थिरा 24/19 सुखीया 24/24 स्कन्धात् स्थिस्यैव स 22/4 | स्वकृत्ये 20/7 | स्वभावोत्तर 20/15 23/20 | हेतुरत्रान्तरङ्गच 19/3 20/6 18/3 22/10 18/7 24/7 18/14 22/8 23/8 24/27 21/20 22/25 21/6 18/22 | स्वरूपमात्रनिर्भास संसारिषु 23/30 | विराम 21/23 | विषयस्य 19/4 | विषयासं 21/30 विहितेऽविहिते 20/5 | वीक्ष्यते 21/26 | वृत्तिरोधो 20/27 | वेद्यं संवेद्यते 19/25 | वैरत्यागोऽन्तिके 19/21 | व्यवहार 21/19 | व्यक्तामिथ्यात्व 22/15 | शमारामा 20/24 | शास्त्रस्यै 24/30 | शास्त्रादेव 19/8 | शास्त्रेण 18/20 शास्त्रेणाधीयते 22/17 शुद्धयपेक्षो 22/19 शौचभावनया 21/16 श्लाघनाद 18/21 | सकृदा | सच्छ्रद्धा 23/6 | स तत्रैव 18/25 सत्क्षयोप 22/5 | सत्त्वं रजस्त 20/2 सत्प्रवृत्ति 18/23 | सत्सु सत्त्वधियं 21/31 | सद्भिः कल्याण 18/29 | समाधि 21/25 23/2 23/13 19/6 19/5 19/19 19/16 22/3 21/14 19/15 20/25 24/14 19/27 20/7 रेचना लेखना वशिता चैव वादांच विकल्पकल्पना विकल्पस्यन्द विज्ञाय वितर्केण 24/21 21/21 विनैतया विनैनं विमुक्त 24/26