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________________ बीकानेर के तत्कालीन नरेश भी इन पर श्रद्धा एवं भक्ति रखते थे ऐसा इनके जीवनचरित्र संबन्धी उपलब्ध सामग्री से ज्ञात होता है । इसके साथ ग्रन्थकारका एक चित्र - पत्रका भी फोटो दिया जा रहा है। जो हमें श्री अगरचन्दजी नाहटा द्वारा प्राप्त हुआ था । राजस्थानी शैली के इस चित्रपत्र में ग्रन्थकार क्षमाकल्याणजी को अपने किसी विशिष्ट भक्तजनके सम्मुख धर्मोपदेश देते हुए चित्रित किये गये हैं। चित्र में अंकित स्थान और व्यक्तियों के प्रभावशाली दृश्य से ज्ञात होता है किसी राजनिवास में बैठ कर किसी राजा को धर्मोपदेश देने के अवसर का भाव इसमें व्यक्त किया जा रहा है। इनका स्वर्गवास बीकानेर में हुआ और वहाँ पर इनका उपाश्रय और उसमें सुरक्षित इनका ज्ञानभंडार भी अभी तक विद्यमान है । इनके निजके हाथ के लिखे कई ग्रन्थ और पट्ट, पत्रादि भी अन्यान्य स्थानों में प्राप्त होते हैं जिसमें की कितनीक सामग्री बीकानेर के प्रसिद्ध साहित्यसेवी श्री अगरचन्दजी नाहटा के संग्रह में है जैन समाज का कर्तव्य है कि वह अपने समाज के ऐसे आदर्श और उत्तम विद्वान् की समग्र साहित्यिक सामग्री को प्रकाश में लाने का प्रयत्न करे । १. मुद्रण की असुविधा के कारण द्वितीयावृत्ति में इसे नहीं लिया है। २. हमारे संग्रह में भी इनसे प्रतिष्ठित एवं इनके हस्ताक्षरों से अंकित कुछ ध्यानयोग्य मंत्र गर्भित चित्रपट्ट हैं जो जयपुर के कोठारी जेठमल्ल नामक जैन गृहस्थ की इष्टसिद्धि के लिये प्रदान किये गये हैं। इनमें से एक पार्श्वयंत्र नामक चित्रमय ध्यानपट्ट है उस पर इस प्रकार पंक्ति लिखी हुई है सं० १८६४ मिते फाल्गुन सुदि २ दिने श्रीपार्श्वयंत्रमिदं प्रतिष्ठितम् । उ० श्री क्षमाकल्याणगणिभिः । कोठारी जेठमल्लस्य इष्टसिद्धयेऽस्ति । इसी प्रकार की एक लेख पंक्ति 'चिन्तामणियंत्र' नामक ध्यानपट्ट पर अंकित है, यथा संवत् १८६४ मिते फाल्गुन सुदि २ दिने । श्रीजयनगरे । श्री चिन्तामणियंत्रमिदं प्रतिष्ठितं । उ० श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः कोठारी जेठमल्लस्य श्रेयोऽर्थम् ॥ ८ विशिष्ट संशोधन संपादक विद्वान ने अपनी प्रस्तावना में पृष्ठ १७ पर 'अ' नामक हस्तलिखित प्रतिका जो परिचय दिया है उसमें उसका लेखनकाल सं. १८२४ लिखा है पर पूर्वापर अनुसन्धान करने से ज्ञात होता है कि १८२४ की जगह १८५४ होना चाहिये। लिपि के पढ़ने से भ्रम से ऐसा लिखा गया मालूम होता है। बीकानेर से श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा ने हमारे पास जो अपने नोट भेजे थे उनमें इस ग्रन्थ का रचना समय १८५४ ही लिखा हुआ मिला है। - मूल ग्रन्थ में पृष्ठ ८३ पर जो एक अन्य प्रति के ४ श्लोक दिये गये हैं उसमें सं. १८२८ में प्रस्तुत फक्किका का रचना समय दिया गया है । वह भी कुछ भ्रान्त ही मालूम होता है और इससे यह भी ज्ञात होता है कि यदि १८२८ में इसकी रचना हुई हो तो फिर उपर जो १८२४ में 'अ' प्रतिके लिखे जाने का समय है वह कैसे संभव हो सकता है। इस लिए हमारे विचार से १८५४ में ग्रन्थ की रचना होने का श्रीनाहटाजी के नोटों में अंकित है वही ठीक मालूम होता है। अनेकान्त विहार अहमदाबाद. आषाढ शुक्ल १. वि. सं. २०१३ (९-७-५६) मुनि जिनविजय सम्मान्य संचालक राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर जयपुर
SR No.009511
Book TitleTarkasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2004
Total Pages55
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size1 MB
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