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तीन कारणों से प्रतिभाव शुभ बनते हैं, कर्म की मन्दता से, चित्त के प्रयत्न से और उत्तम निमित्त से । (७)
शुभ निमित्त से भोगी व्यक्ति अशुभ भाव भी करता है । अशुभ से भी योगियों के शुभ भाव उत्पन्न होते हैं । (८)
योग्यता के अनुसार ही प्रतिभावनाएँ उत्पन्न होती है । गीली मिट्टी में भी बीज से अंकुर अपने गुणों के अनुरुप ही उत्पन्न होता है । (९)
शुभ या अशुभ निमित्तों का उपकार मुख्य नहीं है। कर्मोदय की ही मुख्यता है। (१०)
कर्म की मन्दता के लिए सबसे ज्यादा प्रयत्न करना चाहिए, कर्मो के मन्द होने पर निमित्त क्या करेंगे ? (११)
चित्त के शुभ प्रयत्न से कर्मों की मन्दता होती है। उत्तम निमित्तों के द्वारा प्रायः चित्त की शुभता होती है । (१२)
चौथा प्रस्ताव