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चौथा प्रस्ताव
विषयों के कारण आत्मा द्वारा निर्मित प्रतिभाव अनेक होते हैं । बुद्धिमान् प्रतिभाव के द्वारा अपना अभिप्राय जानते हैं । (१)
वास्तव में अभिप्राय का उत्पन्न होना ही रोकना चाहिए । प्रतिभाव को देखने से उसका ज्ञान सहज हो जाता है । (२)
विषयों की भावनाओं से युक्त चित्त प्रतिक्रिया करता ही है । जैसे घी की धाराओं से सिंचित अग्नि धू धू कर जलने लगती है । (३)
जीव जब अभिप्राय और अर्थघटन से रहित होता है, तब प्रतिभाव और प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं होती है । (४)
प्रतिभावों का अभाव आत्मा की परम अवस्था । यही समाधि, विशुद्धि अथवा सिद्धि है । (५)
तीन कारणों से ये दुष्ट प्रतिभाव उत्पन्न होते हैं । कर्मों के उदय से, पूर्व संस्कारों से और बूरे निमित्त से । (६)
चौथा प्रस्ताव
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