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जिनेश्वर भगवन्त द्वारा उपदिष्ट तत्त्व के आधार से चिन्तन करते हुए जिसने परिवर्तन प्राप्त किया है उसे कौन किस प्रकार दुःखी कर सकता है ? (५५)
जो जिन वचनों से दूर है, मूर्ख व अविचारी है, अपने में परिवर्तन करना नहीं चाहता है, वही दूसरों के द्वारा दुःखी किया जाता है । (५६)
आज मैं जिस स्वरूप में हूँ, वह स्वरूप मेरी आत्मा के लिए योग्य नहीं है। इस आशय को धारण करनेवाला व्यक्ति पहले अपनी परीक्षा करें । (५७)
मैं भूख, रोग आदि का घर देह स्वरूप नहीं हूँ। मैं सिद्धस्वरूप हूँ । मैं शुद्ध (निरपेक्ष) सुख का पात्र हूँ । (५८)
मैं जीवन में और अनुभव में स्वतन्त्र सामर्थ्यवान हूँ। आज मेरा जीवन और अनुभव दोनों ही कर्मों के बन्धन के कारण शरीर के अधीन हो चूके है । (५९)
आज मैं रागद्वेष को वशीभूत हूँ, कषाय से मलीनचित्तवाला, विषयों में आसक्त तथा सर्वथा कर्मबद्ध हूँ। (६०)
तृतीय प्रस्ताव